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________________ इतना नैतिक दायित्व जरूर रखे कि दो घण्टे अपने माता-पिता के साथ ज़रूर रहे और उनके साथ भी दो घंटे बिताए। पतियो, तुम यह जान लो कि तुम पर किसी भी पत्नी का ऋण नहीं होता और पत्नियो, तुम भी समझ लो कि तुम पर भी किसी पति का ऋण नहीं होता लेकिन हर पुरुष और महिला पर माता-पिता का ऋण ज़रूर होता है। माता-पिता ने हममें अपना भविष्य देखा है। उन्होंने हमारी रचना को सुन्दरतम बनाने का प्रयत्न किया है। क्या वह रचना इतनी निष्ठुर होगी कि रचनाकार को ही दुत्कार बैठे? जिसने हमें अपना भविष्य समझा, क्या हम उनका वर्तमान नहीं बनाएँगे? ओह, धरती पर तो एक ही ईश्वर है, और वह ईश्वर हमारे अपने माता-पिता हैं। जितना उन्होंने हमारे लिए किया, उसका २५% भाग भी आप उनके लिए कर दीजिए तो आप उनकी पुण्यवानी और आशीषों के उत्तराधिकारी हो जाएँगे। कैसी विचित्र बात है कि बचपन में हम अपने माता-पिता का बिछावन गीला करते थे और आज उनकी आँखों को गीला कर रहे हैं। याद करो जब तक तुम ठीक से चलने लायक न हुए, वे तुम्हारी अंगुली पकड़ कर तुम्हें चलाते रहे, अंगुली पकड़ कर तुम्हें स्कूल ले आप जाते रहे। वे हमारा सहारा बने हुए थे और आज जब वे अशक्त हैं तो तुम भी उन्हें अंगुली थामकर किसी मंदिर अथवा किसी तीर्थस्थान में जरूर ले जाओ। इसी बहाने शायद तुम्हारा थोड़ासा ऋण उतर जाए। ऐसा करना जहाँ आपके लिए सुखदाई होगा, वहीं आपको थोड़ा-सा उऋण भी करेगा। माँ, तूने तीर्थंकरों को जन्मा है। संसार तेरे ही, दम से बना है। तू मेरी पूजा है, मन्नत है मेरी। तेरे ही चरणों में जन्नत है मेरी॥ हे माँ, तुमने तीर्थंकरों को जन्म दिया है। देवराज भी तुम्हें प्रणाम करते हैं। तुम्हारे ही दम से संसार है। तू ही हमारी पूजा है, तू ही हमारी मनौती है। तेरे ही कदमों में हमारी ज़न्नत है। जो भी माता-पिता के प्रति अपने दायित्वों को, १० वाह! ज़िन्दगी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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