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________________ रही है।' दादाजी चौंक पड़े, 'अरे, ऐसी क्या बात हो गई? मेरे जीते जी घर का कोई सदस्य क्या अलग घर बसाएगा ? मेरे होते हुए इस वटवृक्ष की डाली क्या अलग हो जाएगी? आखिर क्या कारण है कि बहू को इस घर से अलग होने का सोचना पड़ा ?' ननद ने बताया कि भाभी को दीवारों का रंग, पुरानी शैली के सोफे, टेबल-कुर्सी आदि अच्छे नहीं लगते । दादा ने सोचा और तत्काल निर्णय लेते हुए अपने बेटे से कहा, 'बेटा, क्या तुम इतनी छोटी-सी बात के लिए वटवृक्ष से अलग हुई डाली बनना चाहते हो? उन्होंने अपने पुत्र के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, 'बेटा, मेरे पास इतना धन तो नहीं है कि मैं घर का पूरा परिवर्तन कर सकूँ फिर भी तुम यह चाबी लो और मेरे पास जो थोड़ा-सा सोना है उसे बेचकर जैसा बहूरानी को पसंद हो, वैसा घर में परिवर्तन कर लो पर कम-से-कम घर को तो टूटने मत दो।' घर का अभिभावक होने के कारण बुजुर्ग का यह दायित्व बनता है कि वह बड़े-से-बड़ा त्याग करके भी घर को हमेशा प्रेम, आत्मीयता, भाईचारा और सहभागिता से एक बनाए रखे। घर के बुर्जुगों के रहते हुए भी अगर घर टूट रहा है तो इसमें नई पीढ़ी से अधिक बुजुर्गवार दोषी हैं। पुरानी पीढ़ी को भी नई पीढ़ी के अनुरूप ढलना होगा और नई पीढ़ी को भी पुरानी पीढ़ी को समझते हुए घर के माहौल में समझौते के हालात बनाने होंगे। न तो हम पुरानी पीढ़ी को इन्कार करें और न ही नई पीढ़ी के प्रति ही अस्वीकार का भाव लेकर आएँ। एक-दूसरे के प्रति रहने वाले त्याग के भाव में ही परिवार की आत्मा समाई रहती है । 'रामायण त्याग का आदर्श हैं। मैं तो कहूँगा कि हर घर में 'रामायण' जरूर होनी चाहिए। गीता, आगम, पिटक, बाइबिल, कुरान आदि सब शास्त्रों का मूल्य रामायण के बाद है क्योंकि रामायण बताती है कि घर और परिवार को किस तरह से त्याग और आत्मीयता के धरातल पर रखा जा सकता है। रामायण हमारे लिए आदर्श है। मैं महज़ राम-राम रटने की प्रेरणा नहीं दूँगा। मैं राम से, रामायण से घर-परिवार में कुछ सीखने की प्रेरणा दूँगा । मैं भी राम और रामायण से सीखा है। रामायण इंसान के लिए पहली धार्मिक प्रेरणा है जब कि कुरआन और गीता दूसरी प्रेरणा, पिटक तीसरी प्रेरणा और वाह ! ज़िन्दगी ४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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