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________________ आगम चौथी प्रेरणा है। रामायण कुंजी है घर को स्वर्ग बनाने के लिए। हो सकता है कि रामायण में कुछ ऐसे पहलू भी हों जो हमें ठीक न लगे, पर दुनिया की कोई भी चीज आखिर हर दृष्टि से १००% सही या फिट हो भी तो नहीं सकती। हर युग की अपनी दृष्टि और मर्यादा होती है, पर रामायण में भी ९०% तथ्य ऐसे हैं जो हमारे युग को, हमारे जीवन और समाज को प्रकाश का पुंज प्रदान कर सकते हैं। उन्हीं से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि एक बेटा अपने पिता के वचनों का मान रखने के लिए वनवास तक ले लेता है। एक पत्नी अपने पति के पदचिह्नों का अनुसरण करती हुए वन-गमन करती है तो एक भाई अपने भाई का साथ देने के लिए वनवास स्वीकार कर लेता है। एक भाई राजमहल में रहकर भी भाई के दुःख का स्मरण कर राजमहल में भी वनवासी का जीवन व्यतीत करता है। यह सब पारिवारिक त्याग की पराकाष्ठा है। इससे बढ़कर दूसरा शास्त्र क्या होगा? शायद राजमहल में रहते हुए राम को इतना भ्रातृसुख नहीं मिलता जितना वन में रहते हुए उन्हें लक्ष्मण और भरत से मिला था। “राम और सीता को वनगमन करते हुए देख कर लक्ष्मण अपनी माँ सुमित्रा के पास जाते हैं और कहते हैं-'माँ, भाई राम और भाभी सीता वन की ओर जा रहे हैं। उनके जाने से पहले मैं भी तुमसे एक वरदान (आज्ञा) चाहता हूँ।' सुमित्रा ने कहा, 'बेटा, सौतेलेपन के कारण एक नारी ने, एक दीदी ने जो वरदान माँगा था उसका यह दुष्परिणाम हुआ कि राम जैसे पुत्र को वनवास झेलना पड़ रहा है और दशरथ जैसे पति की पत्नी होकर हमें वैधव्य का दाग लग गया है। बेटा, इस समय तुम मुझसे कौनसा वरदान मांगना चाहते हो? तुम्हें माँ से कोई वरदान चाहिए तो भी इस घटित घटना की वेला को गुजर जाने के बाद कुछ वरदान मांग लेना।' लक्ष्मण ने कहा, 'माँ, यह वरदान माँगने का समय आ चुका है। आपने एक मिनट की भी देर कर दी तो मैं जीवन में फिर कभी वह वरदान माँगने योग्य न रह जाआ।' व्यथित होकर सुमित्रा ने कहा, 'जब सारा घर ही उजड़ चुका है, तब तू भी अपना वरदान मांग ले। जब उजड़ना ही है तो यह भी उजड़ने में एक और निमित्त बन जाएगा।' तब लक्ष्मण ने कहा, 'माँ, बड़े भाई राम और भाभी सीता जिस वनगमन घर को स्वर्ग कैसे बनाएँ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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