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________________ थपथपाई और कहा, 'अब तुम खड़े हो जाओ। तुम्हारे चेहरे पर आई हुई चमक को देखकर कहा जा सकता है कि तुमने उस महातरंग का अनुभव कर लिया है।' ओनामी गुरु का आशीर्वाद लेकर आश्रम से चल पड़ा और कहते हैं कि जब तक वह जिया, उसकी तुलना में कोई भी उसकी टक्कर का पहलवान न हो पाया। ओनामी प्रतीक है। यह मेरा और आपका प्रतीक है। वह हर व्यक्ति का प्रतीक है जो शरीर से तो सबल है लेकिन मन से निर्बल हो चुका है। 'निर्बल का बल राम होता है' पर राम का बल व्यक्ति का मनोबल होता है। जिसका मन मज़बूत, उसका पूरा जीवन मज़बूत और जिसका मन कमज़ोर उसका जीवन कमज़ोर। 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।' जो मन से हार गया वह निश्चय ही हार गया और जिसे यकीन है कि वह हर हाल में जीतेगा उसे जीतने से कोई रोक नहीं सकता। लेकिन जिसके मन में यह भय समा गया कि कहीं वह असफल हो गया तो? 'तो' का संदेह उसे अवश्य ही असफल कर देगा। जिसके भीतर आत्मविश्वास जाग्रत हो गया है, वह निश्चित ही सफल होगा। आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, वह अवश्यमेव सफल होगा। जीतने वाला कोई आसमान से नहीं टपकता और हारने वाला किसी पाताल से नहीं निकलता। मनुष्य का मन ही उसे विजय दिलाता हैं और यही मन उसे हार दिलाता है। हारा हुआ मन हार का कारण है और जीता हुआ मन जीत का आधार है। हरेक को चाहिए कि वह अपनी मानसिक शक्तियों को पहचाने। हमारे भीतर ऐसी मानसिक और आत्मिक शक्तियाँ हैं जिनके बलबूते पर हम जो चाहें, वह कर सकते हैं। आल्प्स की पहाड़ियों से गुजरने वाले नेपोलियन को जब बुढ़िया से यह सुनने को मिला कि, 'जाने कितने सेनानायक आए और चले गए, पर आल्प्स की इन पहाड़ियों को वे पार न कर सके। इसलिए तुम अपने विश्व-विजय के ख्वाब को छोड़कर अपने वतन लौट जाओ।' नेपोलियन बोला, 'माँ, अगर तुम बूढ़ी न होती तो मैं हाथ पकड़कर तुम्हें रास्ते से हटा देता। तू मेरी माँ के समान है, इसलिए मैं तेरी इज्जत करता हूँ और बता देना चाहता हूँ कि नेपोलियन के शब्दकोश में असंभव' नाम का शब्द ही नहीं है।' आत्मविश्वास जगाएँ, असंभव का 'अ' हटाएँ ६३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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