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________________ कोई व्यक्ति अपने जीवन में कामयाबी की ऊँचाइयों को हासिल करना चाहता है तो वह 'असंभव' शब्द में से 'अ' को हटा दे। दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं है, जिसे वह करना चाहे और कर न पाए। तब उस बुढ़िया ने कहा था, 'नेपोलियन, तुम्हारे भीतर जो साहस और आत्म-विश्वास के शब्द उमड़ रहे हैं, वे अवश्य ही तुम्हें जीवन में सफलता दिलाएंगे। इन पहाड़ियों को पार करने के लिए कई सेनानायक आए पर जो आत्म-विश्वास तुम्हारे भीतर है, वह किसी में न था।' इतिहास गवाह है कि नेपोलियन ने आल्प्स की दुर्गम पहाड़ियों को पार कर अपने विश्व - विजय के सपने का मार्ग प्रशस्त किया । आत्म-विश्वास व्यक्ति को विजय दिलाता है। जो हारे वे केवल इसलिए कि जीतने के प्रति वे पूरी तरह कृतसंकल्प नहीं थे। जो जीते हैं वे इसलिए कि जीतने की बुनियादी मानसिकता अपने भीतर लेकर चलते रहे। मैं चाहता हूँ कि हर आदमी अपने मनोबल को जाग्रत करे। कुश्ती लड़ने वाले दो पहलवान सबलता की दृष्टि से एक जैसे ही होते हैं, दोनों की ताक़त भी एक जैसी ही होती है । दारासिंह और किंग कांग ने जब कुश्ती लड़ी थी तो किंग कांग दारासिंह से दुगुना वजनी और ताक़तवर था लेकिन फिर भी वह मात खा गया। इसका क्या कारण था? कुश्ती लड़ने वाले दोनों लोग सबल होते हैं, रेस में दौड़ने वा धावक सबल होते हैं, क्रिकेट में बॉलिंग और बैटिंग करने वाले दोनों सबल होते हैं, पर जीतता वह है जिसके भीतर जीतने का विश्वास है । - जिनके मन में कमज़ोरियाँ आ चुकी हैं, उनसे मैं कहना चाहूँगा कि अगर आप अपनी मानसिकता को बदल लें तो अपनी जिंदगी की नई शुरूआत कर सकते हैं। अस्सी वर्ष की उम्र में व्यक्ति बूढ़ा नहीं हो जाता। जिसके मन में तनाव, अवसाद और निराशा आ चुके हैं, वह बचपन में ही पचपन का हो गया, ऐसा जानें। शरीर से बुढ़ापा नहीं आता । मन बूढ़ा तो आदमी बूढ़ा, जिसका मन जवान है, वही युवा है। नाव उसकी ही पार लगती है जिसमें नाव को पार लगाने की दृढ़ मानसिकता है। मन डूबा तो नाव डूबी, मन तिर रहा है तो नाव को तिरना ही पड़ेगा। तूफान लकड़ी की नौका को तो तोड़ सकता है, पर इन्सान के मनोबल को नहीं । आज की समस्या साम्प्रदायिक, सामाजिकता, गरीबी और बेरोज़गारी वाह ! ज़िन्दगी ६४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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