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________________ विकसित करने के लिए अधिक से अधिक प्रोत्साहन दे। लघु एवं घरेलू उद्योगों को करमुक्त किया जाए। उनके लिए ऋण भी प्रदान करे और कम ब्याज पर ऋण दे। ये छोटे उद्योग व्यक्ति को आत्म-निर्भर बनाएँगे। सरकार बड़े उद्योगों के लिए तो ऋण प्रदान करती है, ज़मीन देती है। आदमी फिर उन कम्पनियों में नौकरी करने के लिए मजबूर हो गया न? माना कि एक कम्पनी के बनाने से दो हजार लोगों को रोजगार मिलता है, लेकिन जिस दिन वह कम्पनी बंद हो जाए तो दो हजार लोगों के परिवार बदहाल स्थिति में आ जाएँगे। ऐसी स्थिति में यह ज़रूरी है कि लोगों को प्रोत्साहन दिया जाए। अगर दो हजार लोगों को ऋण दिया गया और उनमें से दो सौ लोग असफल भी हो गए तो अठारह सौ लोग अपने पाँवों पर खड़े हो ही जाएँगे। अगर आप चाहते हैं कि धर्म-नीति द्वारा देश की गरीबी कैसे दूर की जाए? तो मैं आपको बताना चाहूँगा कि धर्म-नीति यह प्रेरणा देती है कि वह एक संविभाग अवश्य करे। महावीर और गांधी ने अपरिग्रह का सिद्धांत दिया था। व्यक्ति परिग्रह न करे, उससे दूर रहे। जहाँ तक मैं देखता हूँ महावीर का यह सिद्धान्त समाज पर पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया। इसी सिद्धान्त से प्रेरणा लेकर मार्क्स और लेनिन जैसे लोगों ने साम्यवाद की स्थापना की थी। फिर भी जो आदमी अमीर है, वह अमीर है और जो गरीब है, वह गरीब है। इसलिए मैं कहना चाहूँगा कि मानवता को सहयोग देने के लिए एक हिस्सा जरूर निकालें। हर व्यक्ति पर समाज का और मानवता का ऋण है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि अपनी आय का ढाई प्रतिशत ज़रूर अलग निकाल दें। हर व्यक्ति जाने-अनजाने कुछ कमाई ऐसी ज़रूर ही करता है जो नैतिकता और ईमानदारी से नहीं होती है। इस रूप में वह मानवता का शोषण ही करता है। हम पर इस शोषण का पाप न चढ़े, इसके लिए एक संविभागअवश्य निकालिए। ___ अपने प्रारब्ध और पुरुषार्थ से हम जितना अर्जित करते हैं, उसका एक हिस्सा माता-पिता को, एक हिस्सा पत्नी और बच्चों के लिए, एक हिस्सा स्वयं के लिए और एक हिस्सा परोपकार, सेवाकार्य के लिए खर्च करें। अगर गरीबी हटाना है, अहिंसा और मैत्री धर्म को जीना है तो हर समृद्ध व्यक्ति एक गरीब आदमी को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गोद ले। किसी को देना नहीं ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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