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________________ 'पोजेटिव' सोच का व्यक्ति अपने विपक्षी के गुणों से भी सीखने का प्रयत्न करेगा। अगर वह पोजेटिवनेस अर्थात सकारात्मकता का स्वाद चख लेता है तो वह खुद-ब-खुद श्रीकृष्ण हो जाता है। कृष्ण अगर नेगेटिवनेस का अनुगमन करते, तो वे भी कंस का चरित्र अपना बैठते । सारी खामी सोच की है, वैचारिकता और मानसिकता की है। सकारात्मक विचारधारा का व्यक्ति हर हाल में राम के चरित्र को अपने में जीने की चेष्टा करेगा, जब कि नकारात्मक विचारधारा खुद ही रावण की बहिन है । आप चाहे नायक हों या खलनायक यदि किसी में किसी तरह का गुण अथवा विशेषता है तो उसे भी अवश्य दाद दीजिए । रामायण का एक बहुत सुनहरा घटनाक्रम है । 'कहा जाता है कि 'जब राम और रावण के मध्य युद्ध होना तय हो गया तो राम की सेना के वानर समुद्र पर सेतु बनाने के लिए प्रयत्नशील हो गए। अभी तक यही कहा जा रहा था कि राम की वानर सेना के लोग रावण की सैन्यशक्ति की तुलना में कहीं खड़े ही नहीं हो पाते। लोगों को लगता था कि रावण ने तो महादेव को भी प्रसन्न कर रखा है, ब्रह्मा की ओर से उसे अमरत्व का वरदान मिला हुआ है, ब्रह्मा से उसे ब्रह्मास्त्र भी मिले हुए हैं, ऐसे महाबली को कौन परास्त कर सकता है? लेकिन जब अकेले हनुमान के द्वारा पूरी लंका को तहस-नहस कर दिया गया तो पूरी लंका हिल गई । जब एक वानर में इतनी ताक़त है तो बाकी के वानरों की ताक़त का अनुमान लगाना सहज नहीं है । तब तो हालत यह हो गई थी कि वानर कहलाने वाले वे लोग अपने हाथ में मोटे-मोटे पत्थर उठाकर उस पर 'राम' का नाम लिखकर समुद्र में फेंकने लगे और उस सागर में भी ऐसी ताकत नहीं रही कि वह उन पत्थरों को डुबा सके । - लंकावासियों ने यह देखा तो वे हिल गए । वे सोचने लगे कि इस वानर जाति का मुकाबला करना तो रावण जैसे पराक्रमी के लिए भी मशक्कत का काम हो जाएगा। रावण के पास यह बात पहुँची कि लंकावासी परेशान हो गए हैं। रावण की सभा के मंत्री और सभासद कहने लगे कि महाराज, पूरे देश में आपके प्रति अस्थिरता के भाव पनप रहे हैं, अविश्वास की लहर उठ रही है । अगर आपको जनता का विश्वास हासिल करना है तो आपको भी सागर के वाह ! ज़िन्दगी २० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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