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________________ हजारों मछलियाँ सागर की तरंगों से किनारे पर आ गिरी हैं। वे वहाँ तड़प रही हैं क्योंकि पानी उनसे दूर चला गया था। वह व्यक्ति वहाँ पहुँचा और एक-एक मछली को उठाकर पुन: पानी में डालने लगा। उसने सौ-दौ सौ मछलियाँ पानी में डाल ही दीं। तभी वहाँ से गुजर रहे दूसरे व्यक्ति ने कहा, 'तुम मछलियों को उठाकर पानी में डाल रहे हो। इससे क्या फर्क पड़ेगा? मछलियाँ तो दूरतट तक बिखरी हैं, लाखों मछलियाँ हैं। उस व्यक्ति ने कहा, 'भाई, मुझे भी पता है कि इतनी सब मछलियों को मैं पानी में नहीं डाल पाऊँगा, लेकिन जितनी मछलियों को डाल सकूँगा उतनी की तो जान बच जाएगी, उतनों का तो भला होगा।' जलता हुआ दीया अगर सौ और दीयों को जलाएगा तो पहले वाले दीये का तो कुछ नुकसान नहीं होगा। हाँ, सौ और दीपक जल जाएँ तो फायदा ज़रूर होगा। दुनिया जितनी सुधरे, उतना ही श्रेष्ठ। संतों के हम ऋणी हैं। संत कोई अलग जमात नहीं है। वह हमारे ही समाज की परिष्कृत, उन्नत पीढ़ी है। संत भी सामान्य इंसान ही होता है, पर वह सामान्य होकर भी असामान्य कार्य कर रहा होता है। संत का सम्मान वास्तव में उसके असामान्य अवदानों का ही सम्मान है। आपका तो कोई व्यापार भी है लेकिन लोगों का भला करना संतों का कोई धंधा या व्यापार नहीं है। वे स्वयं श्रेष्ठ जीवन जीते हैं और अपने आसपास आने वाले हर किसी व्यक्ति को श्रेष्ठ जीवन जीने का बोध देते हैं। वे तो उस कृषक की भाँति होते हैं जो उर्वर और पथरीली दोनों ही तरह की ज़मीन पर अपने बीज बोता है, हल चलाता है, निराई-सिंचाई करता है। कुछ बीज फलते हैं, तो कुछ निष्फल चले जाते हैं। जो फलते हैं, वे इतना आनन्द देते हैं कि निष्फल बीजों की कमी नहीं खटकती। दुनिया में काफी कुछ सुधार हुआ है। लोगों की दृष्टि काफी सकारात्मक हुई है। जो अभी भी संकुचित, छोटी और दुराग्रह-पूर्ण सोच रखते हैं, बहुत जल्दी ही इसमें भी परिवर्तन आएगा। संत हो चाहे न हो, इंसान स्वयं सजग हो रहा है। पीढ़ी ज्यों-ज्यों प्रबुद्ध हो रही है, त्यों-त्यों धार्मिक और आध्यात्मिक १०४ वाह! ज़िन्दगी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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