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व्यक्तिगत जीवन हो या पारिवारिक, सामाजिक जीवन हो या आध्यात्मिक, हरेक को सुव्यवस्थित जीवन जीना, उसके लिए अनिवार्य है। जहाँ लोग यह नहीं जानते कि सुबह कब उठना चाहिए, सांझ को कब सोना चाहिए, क्या और कैसे कब खाना चाहिए, कैसे चलना चाहिए, कब बोलना. चाहिए, कब चुप रहना चाहिए, किस तरह से अपने कार्यों को नियोजित किया जाना चाहिए वहाँ पर जरूरत है कि व्यक्ति अपना प्रबंधन स्वयं करे। अगर किसी ने अपने जीवन में ऊँचाइयों को छुआ है तो अवश्य ही उसने कोई-नकोई तरीका अथवा कोई-न-कोई बुनियादी उसूल जरूर अपनाया होगा। . ____ हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का प्रबंधन करने के लिए जरा अपने विचारों का प्रबंधन करे। जैसे विचार होते हैं, वैसी ही सोच बनती है; जैसी सोच होती है वैसी ही वाणी बनती है। वाणी व्यक्ति के व्यवहार का आधार होती है और व्यवहार आदतों का निर्माण करता है। जैसी आदतें होती हैं वैसा ही व्यक्ति का चरित्र बनता है। सामाजिक चरित्र के बेहतर निर्माण के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपनी आदतों को बेहतर बनाए। आदतों की बेहतरी के लिए व्यवहार और शैली को बेहतर बनाए। व्यवहार और कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने के लिए अपनी वाणी और शब्दों को बेहतर बनाओ। जैसे बीज होंगे, वैसे बरगद फलेंगे। जैसी जड़ होगी, वैसे ही ज़मीन से फूल खिलेंगे।
जो अपने विचारों का प्रबंधन नहीं कर सकता, अपनी सोच को सुव्यवस्थित नहीं कर सकता, उसे चाहिए कि वह अपनी शिक्षा, अनुभव
और ज्ञान का पुन: पुन: उपयोग करे और अपने सोच-विचार को बेहतर बनाने का प्रयास करे। हम प्रतिवर्ष यह कहानी सुनते हैं कि महावीर के समक्ष पहुँचकर राजा श्रेणिक पूछते हैं कि रास्ते में उन्होंने जिस राजर्षि के दर्शन किये थे उस क्षण में उनकी मृत्यु हो जाती तो उन्हें कौन-सी गति मिलेगी? धार्मिक समाज के लोग भली-भाँति जानते हैं कि तब महावीर ने कहा था, 'एक पांव पर खड़ा होकर तपस्या करने वाला व्यक्ति, जिस क्षण तुमने उसके दर्शन किए उस क्षण अगर उसकी मृत्यु हो जाती तो वह सातवीं नरक में जाता। जीवन का रहस्य समझ लीजिए कि मुक्ति के आधार, स्वर्ग-नरक के आधार कर्म और क्रिया में
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वाह! ज़िन्दगी
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