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________________ स्वर्णपदक न पा सका । प्रतिक्षण बेशकीमती है, उसे व्यर्थ न गवाएँ । बातों में ऐसा रस लेते हैं कि उन्हें समय का भान ही नहीं रहता । ऐसा हुआ कि एक प्रोफेसर किसी के घर गया। वहाँ बातों में वह भूल ही गया कि अपने घर भी जाना है। रात के दो बज गए। तब उनका नौकर ढूँढते ढूँढते वहाँ पहुँचा और बोला 'मालिक, अब घर चलिए । रात के दो बज रहे हैं।' प्रोफेसर का माथा ठनका। वह बोला, 'तो क्या मैं अपने घर में नहीं हूँ ? अरे, मुझे तो इतनी देर से ही लग रहा था कि वह व्यक्ति जो मुझसे बातें किये ही जा रहा है, मेरा दिमाग़ खा रहा है वह जाता ही नहीं है। यदि वह जाए तो मैं सोऊँ ।' यह हमारी स्थिति है । अपने समय का ध्यान रखिए। कहीं पर जाना हो तो समय निश्चित कर लीजिए कि आपको वहाँ अमुक समय तक पहुँच जाना है। लेट-लतीफी न कीजिए। देर से पहुँचने वालों का यही इम्प्रेशन पड़ता है कि वह अपने जीवन और समय के प्रति जागरूक नहीं है। आप अपने समय को ऐसा नियोजित करें कि यथासमय सब कुछ सम्पादित हो सके। यूं तो हमें विदेशियों के कार्यकलापों, खान-पान, रहन-सहन की नकल करने का बहुत शौक है, पर हमारे मन में कभी उनकी समय की पाबन्दी का अनुसरण करने का ख्याल क्यों नहीं आता? वहाँ की कुछ अच्छी चीजों को भी आयात करो। अपनी अच्छी चीजों को तो हम निर्यात करते जा रहे हैं किंतु हम वहाँ की अच्छी बातों का भी आयात करें | वह अच्छी बात है उनके समय की पाबंदी । समय की पाबन्दगी, टाइम पंच्युअलिटी, जीवन के प्रबंधन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। इसके अतिरिक्त स्वावलम्बी जीवन जीएं। जो स्वावलम्बी जीवन जीते हैं, वे अधिक स्वस्थ रहते हैं और उनका घर सुव्यवस्थित रहता है। छोटे-छोटे कार्य अपने आप करें, किसी पर निर्भर न रहें। आप अपना खाना खुद लेकर खा सकते हैं। घर के कार्यों में भी आप अपनी पत्नी को सहयोग दे सकते हैं। बच्चों को पढ़ाएँ, उनके साथ खेलें । भोजन किये हुए अपने बर्तन अपने हाथ से साफ करें। हम एक दूसरे के लिए सहयोगी बन सकें, इसीलिए स्वावलम्बन को अपने जीवन के साथ जोड़ें। अपना काम खुद वाह ! ज़िन्दगी २६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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