SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और जो संत समाज को तोड़ डाले, वे संत नहीं, असंत हैं। धर्म का पहला उद्देश्य ही टूटे हुए दिलों को आपस में जोड़ना है और धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाले संत अगर समाज के मध्य खड़े होकर समाज को प्रेम का चिराग नहीं दे पाते हैं तो मैं कहूँगा कि वे अपना नज़रिया दुरुस्त करें। समाज के मध्य खड़े होकर समाज का मार्गदर्शन करने से पहले व्यक्ति का दृष्टिकोण साफ-सुथरा, सौहार्दपूर्ण होना ज़रूरी है। मैंने देखा कि एक नगर में जहाँ एक परम्परा के अनुयायियों में विभाजन हुआ, एक समुदाय अलग, दूसरा समुदाय अलग। दोनों एक ही आचार्य के शिष्य थे मगर हमें उस नगर में यह देखकर आश्चर्य हुआ कि एक समुदाय के संत उस नगर में आ जाएँ तो दूसरे समुदाय के लोग उस संत को आहार भी नहीं देते, बल्कि वे दरवाजे तक बंद कर लेते। अरे, जिस गृहस्थ की देहलीज़ पर अतिथि के पहुँचने मात्र से वह गृहस्थ धन्य हो जाता है वहाँ अगर कोई संत पहुँच जाए और तुम उसके लिए दरवाजे बंद कर लो तो मैं कहना चाहूँगा कि यह हमारी बदकिस्मती है। यह हमारा घटिया नज़रिया है। अच्छा नज़रिया होने पर तो हम अपने दुश्मन के आतिथ्य-सत्कार के लिए भी दरवाजा खोल देते हैं। नज़र-नज़र का ही फर्क है। अगर कोई बढ़ई बगीचे में पहुँचेगा तो पेड़ की लकड़ी की क्वालिटी को ही देखेगा। अन्तर्मन में शत्रुता के भाव लिए उस बगिया में पहुंचने वाला व्यक्ति कोई-न-कोई काँटा ही ढूंढता फिरेगा। जबकि प्रेम की सौगात अपने हृदय में भरकर रखने वाला व्यक्ति वहाँ के गुलाबों से मिलना चाहेगा। वह सुवास और सौन्दर्य का आनन्द लेगा। ___ एक चर्चित उदाहरण है। एक गिलास में आधा पानी भरा है और आधी गिलास खाली है । एक व्यक्ति कहेगा आधा गिलास खाली है', दूसरा कहता है आधा गिलास भरा है। गिलास तो आधा ही रहता है। एक कहता है, 'क्या दूध पिलाया? आधा गिलास दूध पिलाया था। आधा गिलास दूध देकर उसने हमें बेइजत कर दिया।' दूसरा कहता है, 'अरे वाह! वह कितना भला मानुष है जिसने हमें दूध पिलाया। हालांकि मैं तो दूध पीने का आदी नहीं था। बेहतर जीवन का बेहतर नज़रिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy