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________________ आज तो बच्चा ए फॉर एटम, बी फॉर बॉम्ब सीख रहा है। बचपन से ही जब बच्चों को हिंसा और विध्वंसमूलक शब्दों से ज्ञान की शुरुआत कराई जाती है, तब सोचिए कि वह इंसान अपने जीवन में सृजनात्मक शिक्षा को भला कैसे आत्मसात् कर पाएगा? बेहतर होगा जब हम किसी विद्यालय में अपने बच्चे को दाखिल कराएँ तो पता कर लें कि वहाँ के संस्कारों का स्तर क्या है ? फिर तो जैसे-जैसे अनुभव प्रगाढ़ होते हैं मनुष्य का नज़रिया भी वैसा ही बनता जाता है। जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों से जीवन का निर्माण होता है। सही अर्थ में शिक्षित वह है तो अच्छे और बुरे में चुनाव करना जानता हो, जो हालातों का सही ढंग से सामना करने में समर्थ हो और जो अपनी काबिलियत और बुद्धि का निरन्तर सार्थक उपयोग करता हो। नज़रिये के निर्माण में एक और बिन्दु है जिसका सीधा प्रभाव पड़ता है वह है जिंदगी में लगने वाली ठोकरें । ठोकर अपने आप में एक परिपक्व अनुभव है। ठोकर कोई यों ही नहीं लग जाती। हर ठोकर आदमी को सम्हलने की प्रेरणा है। ठोकर कुदरत के घर से दी जाने वाली सिखावन है। जो ठोकर खाकर न सम्हले, वह बुद्ध ही होता है। जो दूसरों को ठोकर खाए देखकर अपने जीवन के लिए प्रेरणा ले लेता है, बुद्धत्व का प्रकाश उसी के द्वार पर उतरता है। इसे यों समझें। दो भाई हैं, एक ही पिता की संतान लेकिन एक भाई शराबी है और दूसरा भाई सभ्य और भली ज़िन्दगी जी रहा है। लोगों ने शराबी से पूछा, 'तुम शराब पीते हो, पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करते हो, बच्चों के साथ मारपीट करते हो, पत्नी की कमाई भी शराब में उड़ा देते हो, आखिर ऐसा क्यों करते हो?' उसने कहा, 'क्यों न करूँ ? मेरा बाप भी यही सब करता था, उसी से तो मैंने यह सब सीखा है।' लोगों ने उसके भले सजन-सम्पन्न भाई से भी पूछा, 'तुम्हारा बाप तो शराबी था। वह पैसे-पैसे को तरसता था, पत्नी, बच्चों से दुर्व्यवहार करता था, पर तुम तो बहुत इज़त की ज़िन्दगी जी रहे हो। प्रसन्न रहते हो, सम्पन्न हो, आखिर क्या बात है?' उसने कहा, 'जो बेहतर जीवन का बेहतर नज़रिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003856
Book TitleWah Zindagi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2005
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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