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इच्छाएँ होने लगी हैं?' गर्भवती महिला ने कहा, 'कभी इच्छा होती है कि सिगरेट पीऊँ, कभी इच्छा होती है कि शराब पीऊँ। तब उसकी सहेली ने कहा, शर्त लगाले, तब तो तुझे लड़का ही होगा। मतलब?' 'मतलब यही कि ऐसे भाव, ऐसे विचार जिनके मन में आते हैं वे विचार पूर्व के प्रारब्ध से इंसान की जन्म लेने वाली संतान के संस्कारों के कारण उठा करते हैं।
हम केवल माहौल को ही दोष न दें। पूछने वाले ने पहले ही समझ लिया है कि वह ऐसे संस्कार पूर्व के प्रारब्धसे लेकर आया होगा। फिर जैसा माहौल बनता है, घर में बच्चा भी वैसा ही बनता है। अगर माता-पिता अपने बच्चे को संस्कार-युक्त न बना पाएँ तो वे अक्षम्य हैं। उन्हें अपने दायित्व निभाने चाहिए, अपने कर्त्तव्य अवश्य निभाने चाहिए। अगर आप सिगरेट पीते हैं तो आज नहीं तो कल आपका बेटा सिगरेट अवश्य पीएगा, नहीं पीए तो वह अवश्य ही पूर्व के अच्छे प्रारब्ध को साथ लेकर आया है। अगर आप कैरम खेलेंगे तो बच्चा भी कैरम खेलेगा और ताश खेलेंगे तो बच्चा भी ताश ही खेलेगा। ऐसा हुआ___एक व्यक्ति रिटायर हो गया। पहले जमाने में लोग रिटायर होते तो बच्चों को, पोतों को प्यार बाँटते, कहानियाँ सुनाते, उन्हें अच्छे-अच्छे संस्कार देते। अब तो टी.वी. का जमाना है। वे बैठे रहते हैं दिनभर टी.वी. के सामने।
खैर, उन्हें टी.वी. का शौक न था सो दिन भर ताश खेलते रहते। एक दिन उन्होंने अपने छोटे पोते से पूछा, 'बेटा, क्या तुम्हें गिनती आती है?' उसने कहा, 'हाँ, दादाजी आती है।' 'तो सुनाओ। उसने कहा, 'इक्का, दुग्गी, तिग्गी, चौका, पंजा, छक्का, सत्ता, अट्ठा, नहली, दहली, गुलाम, बेगम बादशाह।
अगर घर में रात-दिन ताश चलेगी तो बच्चों में वैसे ही संस्कार आएँगे। घर के माहौल के लिए माता-पिता और अभिभावक नियंत्रण और लक्ष्मणरेखाएँ अवश्य रखें जिनसे आने वाला कल अच्छा हो सके। अगर बच्चा कुबुद्धि अल्पज्ञान, अध्यात्म-रहित, जीवन की मर्यादा और संस्कारों से वंचित है तो इसका कारण माता-पिता का बच्चे की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देना ही है। यह भी संभव है कि गलत सोहबत से, बुरे असर से वह न बच पाया होगा।
वाह! ज़िन्दगी
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