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अन्तिम प्रश्न : अनादि काल से साधु-संत विद्वान्-गुणीजन और धर्मगुरु मनुष्य को मनुष्य बनाने का सतत प्रयास करते आ रहे हैं। परन्तु हम उस काल से लेकर आज तक दृष्टि डालें तो पाएँगे कि सृष्टि में पाप, अनाचार, अनैतिकता, छल-प्रपंच आदि में बढ़ोतरी हुई है। इसके बावजूद साधुसंतों के पास क्या कोई ऐसी निरापद व्यवस्था है कि इस सृष्टि को पापकर्मों से मुक्त एक आदर्श नैतिक स्थान बना सकें या इस बढ़ते हए क्रम में कमी की जा सके?
(श्री देवीशंकर दशोरा) ___प्रश्न का भाव यह है कि जाने कब से साधु-संत लोग दुनिया को सुधारने का प्रयत्न करते आ रहे हैं फिर भी दुनिया सुधर नहीं पाई। क्या कोई ऐसी व्यवस्था है जिससे समाज को बेहतर बनाया जा सके। मेरे प्रभु, सार रूप में इतना सा निवेदन करूँगा कि यह समाज, यह संसार साधु-संतजनों की वाणी
की ऋणी है जो समाज व समग्र मानव-जाति के कल्याण के लिए अपने स्वार्थों का त्याग करके तत्पर बनी हुई हैं। जरा आप कल्पना कीजिए कि अगर दुनिया में संत-पुरुष न होते तो इस दुनिया का क्या हाल हुआ होता? जब इतने सारे त्याग और संतपुरुष मिलकर इस दुनिया के कल्याण के लिए प्रत्यनशील हैं तब भी अगर दुनिया सुधर न पाई, तो यदि ये संतजन न होते तो यह दुनिया चार दिन भी जीने के लायक नहीं रह पाती।
आज जब सब लोग स्वार्थ से घिरे हुए हैं तब ये संतजन ही मनुष्य को मनुष्य के लिए कुछ करने की प्रेरणा दे जाते हैं। तब आदमी अपने स्वार्थों का त्याग करता है। मेरा विश्वास है कि वे व्यक्ति संतजनों के पास जाकर, सुधरते ही हैं जो स्वयं को सुधारने के लिए संकल्पशील होते हैं। हम तो प्राणिमात्र को प्रेम व शांति का वह संदेश देना चाहते हैं जिससे आपका, समाज का, घर का, देश का और सारे संसार का वातावरण अच्छा हो सके, बेहतर हो सके। हो सकता है कि हम सारी दुनिया को न सुधार पाएँ, न बदल पाएँ लेकिन अगर हजार लोग भी नेक रास्ते पर चलने लगे तो कम-से-कम कुछ तो तैयार हुआ ही। कुछ तो बदले। अमृत-बिन्दु जितनों को मिली, उतने तो धन्य हुए।
ऐसा हुआ। एक व्यक्ति समुद्र के किनारे पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि
ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी
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