Book Title: Wah Zindagi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 108
________________ जीवन के बेहतर निर्माण और सफलता के लिए, आध्यात्मिक उन्नति के लिए आप कुसंगति से बचें। जीवन में इतना ही पर्याप्त नहीं है कि आप अच्छी सोहबत पाएँ बल्कि यह भी ज़रूरी है कि गलत संगत और गलत सोहबत से बचें। हो सकता है, आपके घर का माहौल अच्छा हो लेकिन मित्र-दोस्त अच्छे न हों। कौन व्यक्ति कैसा है, यह उसके दोस्तों की सोहबत से पता चल जाएगा। जैसा स्तर दोस्तों का होगा वैसा ही स्तर व्यक्ति का होगा। किसी मूर्ख को दोस्त बनाने की अपेक्षा बुद्धिमान दुश्मन कम खतरनाक होता है। मूर्ख व्यक्ति को, गलत संगत में पड़े व्यक्ति को दोस्त बनाने की बजाय अकेले रहना अच्छा है। तीन चीजें व्यक्ति को तकदीर से मिलती हैं १. अच्छी पत्नी २. अच्छी संतान और ३. अच्छा मित्र। ___घटिया सोच वाले लोगों से हमेशा दूर रहो। तुम्हारी जिंदगी में काँटे बोने वालों में हमेशा दूर रहो। समाज को ऐसे लोगों से बचाया जाए जिनकी सोच और नज़रिया घटिया है। अश्लील साहित्य मत पढ़ो। अपनी कुबुद्धि को दूर करने के लिए अश्लील साहित्य से बचो। अभद्र व्यवहार से बचो। दुर्व्यसनों से बचो। सिगरेट, गांजा, चरस, अफ़ीम, हेरोइन ये सब ऐसे दुर्व्यसन हैं जो व्यक्ति को आउट ऑफ कन्ट्रोल कर देते हैं। आज हमारे देश में सर्वाधिक नुकसान शराब से हुआ है। शराब व्यक्ति का विवेक समाप्त कर देती है। वह पत्नी के प्रति पत्नी का व्यवहार नहीं करवाती, बच्चों के प्रति बच्चों का व्यवहार नहीं रहने देती। नतीजतन इंसान, इंसान नहीं रहता। वह जानवर बन जाता है। जिस गांव में विद्यालय नहीं होगा, वहाँ पर भी शराब की दुकान जरूर मिल जाएगी। __ सिगरेट के विज्ञापनों में वैधानिक चेतावनी के रूप में पहली पंक्ति होती है, 'सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इससे कैंसर हो सकता है।' मुझे लगता है कि यह पढ़े-लिखे इन्सानों की कौम कितनी बुद्धू और बेवकूफ है और न जाने किस कुबुद्धि से जुड़ी है कि जो रोज पढ़ती है-कैंसर होने की सम्भावना-फिर भी रोज...। अनपढ़ और गंवार लोग बीड़ी पियें तो समझ में आता है लेकिन पढ़े-लिखे लोग शराब और सिगरेट में अपना जीवन होम देते ऐसे मिटेगी, देश की गरीबी १०१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 106 107 108 109 110 111 112 113 114