Book Title: Wah Zindagi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 93
________________ हमारे पास धर्म है, पंथ नहीं? हमारे पास जीवन की शैली है, रोजमर्रा का ढर्रा नहीं। लोग जीने की कला चाहते हैं। धर्म की वे ही बुनियादी बातें समाज को दी जानी चाहिए जो जीवन जीने की कला से जुड़ी हैं। हर पंथ, परम्परा, धर्म, जाति, कौम के लोग यहाँ बैठे हैं। यह केवल समन्वय ही नहीं है अपितु यह मानव-समाज के द्वारा नैतिकता के प्रति, अपनी धार्मिकता के प्रति आस्था भी है। आप यह प्रश्न उठाते हैं कि धर्म की हानि होने पर महापुरुष अवतार लेते हैं तो मैं गौरवपूर्वक यह बात कहूँगा कि हमारा वर्तमान अतीत से अधिक श्रेष्ठ है। अगर ऐसा न होता तो भगवान अभी तक अवतार ले चुके होते। हम प्रसन्न रहें कि हम ऐसे युग में पैदा हुए हैं जहाँ अभी ईश्वर के अवतार की जरूरत नहीं है। ___मैं मानता हूँ कि नैतिक पतन हुए हैं। हम सभी के जीवन में नैतिक मूल्यों में कमी आई है, गिरावट आई है। हमारी न्याय-प्रणाली और न्याय होने की लंबित प्रक्रिया ने इस देश में नैतिक मूल्यों को कम किया है। जिस नैतिकता के लिए न्याय-प्रणाली स्थापित की गई है वह बहुत दूर और पीछे छूट गई है। व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाता है पर न्याय नहीं मिल पाता। इसने हमारे नैतिक मूल्यों पर प्रश्न-चिह्न लगाया कि व्यक्ति आखिर क्या करे? फिर व्यक्ति गुंडागर्दी का, आतंक का उपयोग करता है। वोटों की राजनीति के कारण भी हमारे देश में बहुत अधिक नैतिक पतन हुआ है। तुमने काम किया या नहीं किया, यह पूछने के जमाने चले गए, अब तो वोटों के लिए कुछ खास हथकंडे अपना लो, तुम जीतकर आ जाओगे। अब जो चुनाव जीतता है, उसके प्रति यह विश्वास करना मुश्किल है कि वह लोकतंत्र की व्यवस्था है या उसके चुनावी प्रबंधन(!) का परिणाम है। चुनाव में अगर उसने पाँच लाख खर्च किये हैं तो जब तक पाँच करोड़ घर में न आ जायें, वह चुप बैठने वाला नहीं है। ___भोग-विलास की तृष्णा मनुष्य के भीतर इतनी बढ़ी है कि जिसके कारण हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख-साधन पाना चाहता है। मैं इसका विरोध नहीं करूँगा। हर व्यक्ति को समृद्ध होना चाहिए। इस देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को भी अर्थ-समृद्धि उपलब्ध हो। समृद्ध व्यक्ति कम पाप करता है जबकि गरीब अधिक पाप करने पर उतारू होता है। असमर्थ क्या करेगा? वैसे भी हम वाह! ज़िन्दगी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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