________________
थोड़ा आप खुद सुधरिये। पूज्यश्री, मैं हीनभावना से ग्रस्त रही हूँ, मुझे हमेशा हिचक रहती है। अभी भी आत्म-विश्वास नहीं बन पा रहा है। आपको सुनने से मुझे राहत मिली है। शायद आपसे मेरा समाधान हो जाए।
(शिल्पा अरोड़ा) · मनुष्य का जीवन प्रकृति से मिला हुआ अनुपम वरदान है। हरेक का जीवन प्रकृति के घर से इतना असाधारण होता है कि उसके सामने धरती की हर सम्पदा साधारण हो जाती है। यदि व्यक्ति अपने ही जीवन पर ध्यान दे तो उसे यह जानकर आश्चर्य होगा कि धरती का हर प्राणी, हर इन्सान सम्पन्न होकर पैदा होता है। यदि हम किसी को एक आँख देने को तैयार हो जाएँ तो इसके लिए एक लाख रुपए मिल सकते हैं। यदि दोनों देने को तैयार हों तो ग्यारह लाख भी मिल सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी एक किडनी देने को तैयार हो जाए तो इसके बदले उसे दस लाख मिल सकते हैं और दोनों किडनी देने पर तो बीस लाख भी मिल सकते हैं। प्रकृति के घर से मनुष्य को इतनी सम्पदाएँ मिली हुई रहती हैं कि अगर वह स्वयं का ही मूल्यांकन करे तो अन्तर्मन में पलने वाली हीनता की ग्रंथि तत्काल मिट सकती है।
हीनता के भाव जीवन के समस्त मानसिक रोगों की जड़ हैं। हीनता के कारण विद्यार्थी विद्यार्जन नहीं कर पाता, व्यापारी अपने व्यापार में सफल नहीं हो पाता, गृहिणी मर्यादित और गरिमापूर्ण व्यवहार नहीं कर पाती। जब-जब मनुष्य अपनी योग्यताओंको आँकेगा, अपनी क्षमताओं को समझने की कोशिश करेगा तब-तब उसके भीतर से हीनता की ग्रंथि मिटेगी और आत्म-विश्वास जाग्रत होगा। जब कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यताओं को कम आंकता है या जीवन के प्रति गलत धारणाएँ बना लेता है तब ही उसके भीतर हीनता के भाव, हिचक, संकोच और नपुंसकता जन्म लेती है। जो अपने आप पर विश्वास रखता है, वही वास्तविक आस्तिक होता है। ___ गीता में भगवान कृष्ण ने निरंतर सात सौ छप्पन श्लोक कहते हुए अर्जुन के भीतर उत्पन्न हीनता की ग्रंथि को ही दूर करने का प्रयास किया था। क्या है ऐसे मिटेगी, देश की ग़रीबी
९५
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org