Book Title: Wah Zindagi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 97
________________ तुम्हारे साथ चल रहा हूँ। क्योंकि मुझे आत्म-ज्ञान हो गया है कि मेरे पिता एक हजार वर्ष की जिंदगी में तृप्त न हो पाए तो यह पुरु सौ साल की जिंदगी जीकर कैसे तृप्त हो जाएगा ?' कहते हैं कि यह बात सुनकर ययाति की आँखें खुल गईं और एक मूर्च्छाग्रस्त व्यक्ति जागृति की अवस्था में आ गया। आज मैं भी आप लोगों से कह देना चाहूँगा कि अस्सी साल के होकर भी अगर आप तृप्त न हो सके तो मैं कौनसा तृप्त हो जाऊँगा? इसलिए आज जो भी है, जैसा भी है, मैं तृप्त हूँ । मन तो है । शरीर बूढ़ा हो जाता है, पर किसी का मन बूढ़ा होता है क्या ? इसलिए मस्त रहना सीखो। हर हाल में खुशहाल । / कुछ लोग सपनों में पड़े रहते हैं, विचारों में खोये रहते हैं । वे दिन-रात सपने देखा करते हैं। दिन में सपने देखते हैं कि यह करना है, वह करना है, रात में सपना देखते हैं कि वे टाटा, बिड़ला, अंबानी हो गये हैं। तभी पत्नी जगा देती है तो पता चलता है कि वे वहीं बिस्तर पर पड़े हैं। आँख तो किसी-किसी खुलती है। जैसे कोई प्याऊ पर पानी पीता है बूक लगाकर तो आधा भीतर जाता है आधा बाहर ही छिटक जाता है । जो आधा भीतर गया वह कुछ न कुछ काम कर ही जाता है। मुझे पता है कि जो आधा भीतर गया है, वह कुछ न कुछ काम जरूर करेगा। यदि आप हक़ीकत से परिचित हों तो आप जान जाएँगे कि जीवन-मूल्यों को प्राप्त करने के लिए जाग्रत अवस्था में चेतना की जो आध्यात्मिक दशा उपलब्ध होती है, वह सुषुप्त अवस्था में नहीं हो सकती । लोग सपने देखते हैं। सपने सभी को आते हैं। दिन में शेखचिल्ली के सपने आते हैं, रात में घरवाले सपने आते हैं। एक बार तीन दोस्त घूमने निकले। बगीचे में पहुँचकर उन्होंने अपने लिए नाश्ता-खाना बनाया। खीर बनाई, अन्य दूसरे व्यंजन भी बनाएं, खाए-पिए और सांझ उसी बगीचे में ठहराए गये। खीर बहुत बन गई थी सो खाने के बाद भी बच गई। अब उसे कौन पीए? विचार किया, 'रख देते हैं, चाँदनी रात है, खराब नहीं होगी, कल पी लेंगे।' पर सुबह पिएगा कौन? तो निर्णय हुआ कि सबसे अच्छा सपना देखेगा, उसे ही खीर मिलेगी । अब रात में तीनों सो गए। खीर का कटोरा ढका रखा था। सुबह उठे तो आपस में कहा कि वाह ! ज़िन्दगी ९० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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