Book Title: Wah Zindagi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 95
________________ मुझे खोटी चवन्नी दे गया। पति ने कहा-“एक चवन्नी के लिए अपना दिमागे क्यों खराब कर रही है? ठीक है, वह भूल से दे गया होगा। अब इतना चिल्लाने के बजाय वह चवन्नी मुझे दे दे। मैं तुम्हें दूसरी दे दूंगा।' पत्नी ने जवाब दिया'वह चवन्नी? अरे दस बजे सब्जी वाला आया था वह तो मैंने उसे दे दी। हम अपनी आन्तरिक स्थिति को पहचानें और जानें कि कहाँ क्या खोट है? उसे सुधारें। अगला प्रश्न है : भगवन्, आप जागरण की बात करते हैं, जबकि हम संसारियों को सोना ही अच्छा लगता है। तो फिर जीवन जागता अच्छा है या सोया हुआ? ___ मैं जानता हूँ कि आपको सोना अच्छा लगता है। हक़ीकत यह है कि धरती पर तीन तरह की प्रवृत्ति के लोग होते हैं-मूर्च्छित, स्वप्निल, और जाग्रत। मूर्च्छित अवस्था में रहने वाले लोग अज्ञान के कारण हैं। अज्ञान और मूर्छा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अज्ञान से मूर्छा का और मूर्छा से अज्ञान का जन्म होता है। किसी भी व्यक्ति को सोना इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि वह मूर्च्छित है। कोई भी धर्म के किनारे आकर भी स्वयं को धर्म से न जोड़ पाए तो जान लें कि वह मूर्च्छित है और कोई भी बात उसके दिमाग में प्रविष्ट नहीं हो पा रही है। ऐसी प्रकृति के लोग जिस कान सुनते हैं उसी से बाहर निकाल देते हैं। कुछ स्वप्निल प्रकृति के लोग होते हैं जिनके एक कान में कुछ घुसता तो है और वह कुछ देर तक अंदर भी रहता है, किन्तु दूसरे कान से वह बाहर निकल जाता है। कुछ ऐसी जाग्रत-चेतना के लोग भी होते हैं जिनके कान से सीधा अंदर चला जाता है। वे ग्रहण करने के भाव से बैठे हैं। इसीलिये सीधा अंदर चला जाता है। मूर्छाग्रस्त लोगों के लिए ही हमारे जीवन के जागरण के संदेश हैं। पाएगा तो व्यक्ति स्वयं। मैं तो रोज-ब-रोज दो चार चुल्लू पानी ले आता हूँ, सोये हुए व्यक्ति पर छींटा डालता हूँ। कुछ लोग उन छींटों को पाकर जग जाते हैं, वे खड़े होकर अपने रास्ते चल देते हैं। कुछ लोग अंगड़ाइयाँ लेते हैं और वापस सो जाते हैं। पर कुछ मूर्च्छित प्रकृति के ऐसे लोग भी होते हैं जिन पर बाल्टी भी गिरा दो, तो भी वे कुंभकर्ण की तरह सोये ही रहते हैं, ८८ वाह! ज़िन्दगी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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