Book Title: Wah Zindagi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 49
________________ दिए कि एक माह बाद वह गणिका श्राविका बन गई। संत उस श्राविका को लेकर भगवान के पास पहुँचा और कहा, 'भंते, मैं लगातार जिस साधना में रत रहा, आज उस साधना का पुण्य पीड़ित महिला के बेवक्त काम आया। यह कभी गणिका थी लेकिन अब वह श्राविका बन चुकी है। यह पवित्र भावों से भर चुकी है, भंते, आप इस महिला पर कृपा करें और इसे संन्यास प्रदान करें, इसकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करें।" - गणिका साध्वी बन गई। इसे कहते हैं प्रेम के पवित्र मार्ग को जीना। प्रेम को समझकर ही जीवन को समझा जा सकता है। प्रेम को जी कर ही जीवन के मर्म को जिया जा सकता है। प्रेम का रास्ता ही जीवन में मेघदूत का अमर काव्य रचता है और सीता वनवास के कष्ट को स्वीकार कर लेती है। सोचिए, अगर धरती पर प्रेम न होता तो क्या सीता, सीता होती? क्या गीता, गीता लगती? सचमुच, प्रेम ही वह डोर है जिस पर बादल भी झूमते हैं और बिजलियाँ भी नाचती हैं। चाहे बरसे जेठ अंगारे, या पतझर हर फूल उतारे। अगर हवा में प्यार घुला है, हर मौसम सुख का मौसम है॥ कितनी भी कम्बख़्त रात हो, दीपक सुबह बुला लाता है। एक कली की अंगड़ाई से सारा बाग महक जाता है। कंकड़-काँटों भरी डगर हो, या प्याले में भरा ज़हर हो। पीड़ा जिसकी पटरानी है, उसको हर मुश्किल मरहम है॥ भीतर से रंग जाय न जब तक ४२ वाह! ज़िन्दगी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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