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की इच्छा हो रही है तो उसे छीलना, काटना सिखायें। वह खुद भी सुधार कर खाएगा और आपको भी खिलाएगा अन्यथा जीवन भर आपको बच्चे की गुलामी करनी पड़ेगी। बच्चे को समर्थ बनाएँ, मेहनती बनाएँ।
कंधे-कंधे मिले हुए हैं, कदम-कदम के साथ हैं,
पेट करोड़ों भरने हैं, पर उनसे दुगुने हाथ हैं। ऊँचे लक्ष्य बनाओ, ऊँचे सपने देखो और सपनों को पूरा करने के लिए कठोर परिश्रम करो। जिंदगी में कोई सफलता मुफ्त में नहीं मिलती। चंदा भले ही मिल जाए, पर धंधा नहीं मिल सकता। धंधा करने के लिए तो परिश्रम करना ही होगा। बिना मेहनत के देश की गरीबी तो क्या, घर की गरीबी भी दूर नहोगी।
मैंने सुना है : एक रेस्टॉरेन्ट में एक व्यक्ति पहुँचा। वहाँ के मैनेजर ने पूछा 'तुम कौन सा भोजन करना चाहोगे, शाकाहारी या मांसाहारी?' उसने सोचा 'रोज तो शाकाहारी भोजन करता हूँ, आज मांसाहारी भोजन ही कर लूँ।' उसे एक टिकिट दिया गया और कहा, 'आप ऊपर चले जाइए।' अर पहुँचा तो हॉल में एक आदमी और मिल गया। उसने पूछा, 'आप खाना खाने तो आए हैं, पर बैठकर खाना पसंद करेंगे या खड़े-खड़े?' उसने सोचा, घर में तो रोज बैठकर ही खाता हूँ आज बुफे का मज़ा भी ले लूँ,खड़े होकर ही खा लेता है।' उस व्यक्ति ने उसे एक पर्ची और दे दी और कहा, 'आप दाहिने हाथ वाले रूम में चले जाइए। वहाँ खड़े-खड़े खाने की व्यवस्था है। जब वह उस रूम में पहुँचा तो एक आदमी इधर भी मिल गया। उसने पूछा, 'साब नगद देकर खाएँगे या उधार रखकर।' आदमी ने सोचा, नकद देकर तो रोज ही खाता हूँ। आज उधार वालों में खा लेता हूँ। उस बंदे ने एक पर्ची और थमाई और कहा, भाई। यह जो सामने वाला गेट है, उसमें से अंदर चले जाओ।' गेट पार कर जब वहाँ पहुंचा तो देखा कि वहाँ तो सीढ़ियाँ हैं। उन सीढ़ियों से उतर कर नीचे पहुँचा तो उसने पाया कि वह तो सड़क पर पहुंच चुका है। ___मुफ़्त का खाना चाहोगे तो ऐसा ही होगा। दुनिया में किसी को भी मुफ्त में कुछ नहीं मिलता है। व्यक्ति को कठिन परिश्रम करने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। चौथी बात कहूँगा कि प्रशासन लघु उद्योगों, घरेलू उद्योगों को ७८
वाह! ज़िन्दगी
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