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ग्रामीण और आदिवासी जनता को शिक्षित किया जाए। जैसे-जैसे इस देश में पिछले पचास वर्षों में शिक्षा का विकास हुआ है, वैसे-वैसे गरीबी कम-कमकम हुई है। कोई आज की दशा पर संतोष करे या न करे लेकिन जिसने भी चालीस साल पहले की ज़िंदगी देखी हो, वह भली-भाँति जानता है कि उसके लिए पाँच रुपये का खर्च करना कठिन होता था लेकिन आज व्यक्ति पांच सौ रुपये आसानी से खर्च कर देता है। उसकी क्रयशक्ति बढ़ गई है। देश की अर्थव्यवस्थाएँ बदली हैं, उसके तौर-तरीके बदले हैं और विकास के चहुंमुखी द्वार खुले हैं। माना कि गरीबी आज भी है पर पहले की तुलना में कम है। पहले मिट्टी की कच्ची सड़कें होती थीं। अगर कोई भीलवाड़ा के राजमार्ग से गुजरेगा तो वह पाएगा कि यहाँ के राजमार्ग अब पगडंडियाँ नहीं रहे। वे विशाल राजमार्ग बन चुके हैं। पहले झोंपड़पट्टी में रहने के लिए हर आदमी मज़बूर था लेकिन अब तीस प्रतिशत जनता बमुश्किल झोपड़पट्टी में रहती होगी। गाँव-गाँव में पक्के मकान बन गए हैं और संचार-क्रांति हुई है। गाँव-गाँव में फोन और मोबाइल पहुँच चुके हैं। रेडियो, ट्रांजिस्टर तो पुराने युग की बात हो गई है। अब तो दूरदर्शन ने अपनी पहुँच बना ली है और ई-मेल और इंटरनेट का युग आ गया है। गाँव-गाँव में विद्यालय हैं और महाविद्यालय, तकनीकी संस्थान तक खुल रहे हैं। शासन और प्रशासन भी जागरूक हैं। ____ जब तक ग्रामीण जनता शिक्षित न होगी और जागरूक होकर अपने पिछड़ेपन का त्याग नहीं करेगी तब तक गरीबी दूर न हो सकेगी। मैं कहना चाहूँगा कि प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों को श्रेष्ठ शिक्षा दें। लड़के-लड़की में भेद न करके लड़कियों को भी समानता का अधिकार दें। उन्हें उच्च शिक्षा दिलायें। जिन लड़कियों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है, वे अवसर मिलने पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर सकी हैं। यद्यपि यह संख्या न्यून है फिर भी लड़कियों ने अपनी योग्यता से लड़कों को पीछे छोड़ दिया है। पिछले पच्चीस सौ वर्षों से यदि नारी जाति को शिक्षित करने के प्रयास किये जाते तो यह देश आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुका होता। अभी तक तो केवल पुरुषों की ही भागीदारी रही है लेकिन पिछले वर्षों से नारी जाति भी आर्थिक समृद्धि में सहयोगी के रूप में उभरी है। हर माता-पिता अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाए ताकि पुरुष जाति
वाह! ज़िन्दगी
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