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कुछ भी आप कह रहे हैं वह सब सच है । मैंने बचपन में जब-जब भी पिता के इस रूप को देखा तब-तब मेरे भीतर यह प्रेरणा जगने लगी कि शराब के कारण पिताजी ने घर को तहस-नहस कर दिया, मेरी देवी जैसी माँ के साथ दुर्व्यवहार किया लेकिन जब मैं बड़ा होऊँगा तब कभी शराब नहीं पीऊँगा, अपनी पत्नी से उपेक्षा और अपमानजनक व्यवहार नहीं करूँगा और न ही बच्चों से मारपीट करूँगा। बचपन के वे कटु अनुभव ही मेरी अच्छाई का मूल कारण है ।
एक ही घर में पैदा होने वाले दो बच्चों में एक बिगड़ैल निकल जाता है और एक सुधर जाता है। एक का नजरिया घटिया और दूसरे का बढ़िया हो ता है। जो ज़िन्दगी से कुछ सीखना चाहता है, वह अपने आपको वैसा ही ATIT लेता है और जो अपने आपको बनाना नहीं चाहता, उसे कोई भी गीता
और रामायण भी श्रेष्ठ नहीं बना सकतीं। जिंदगी के अनुभव ही जीवन का पहला शास्त्र है, उनसे समझें और सीखें। आप अपने बच्चों का उनके बचपन से ही अच्छा नज़रिया बनाने के प्रति जागरूक हो जाइए। बच्चों की जरूरतों के अतिरिक्त उनसे पूछिए कि 'उनके मन की कैसी स्थिति है, उनके मन में कैसे विचार उठते हैं, आज सपने में उन्होंने क्या देखा? उन्हें अच्छी कहानियाँ सुनाइए और उनके नज़रिये को ऊँचा उठाने का प्रयास कीजिए । भीतर अगर कोई बीज पनप रहे हैं और यदि उनमें कैक्टस या काँटे हैं तो उन्हें पहले से उखाड़ कर फेंकने का प्रयास करेंगे तो जीवन का उद्यान सौम्य, सुंदर और मधुर होगा ।
अपने नज़रिये को बेहतर, सकारात्मक, पोजेटिव बनाने के लिए कुछ और कीमिया सूत्र ले लें। पहला गुर है : बेहतर नज़रिया बनाने के लिए औरों की अच्छाइयों को तलाशें, अपनी सोच को बदलें और अच्छाइयाँ देखने की ही मानसिकता पैदा करें। अच्छाई देखना चाहोगे तो हर किसी में अच्छाई मिल जाएगी और बुराई देखोगे तो अच्छाई में भी बुराई ढूँढ ही लोगे । अच्छाई को तलाशने का अर्थ ही यह है कि हम अपनी ग़लतियों को नज़र अंदाज़ कर दें। जो गलतियों को नज़रअंदाज करने का जज्बा रखता है, वही अपने नज़रिये को बेहतर बनाने में सक्षम होता है। हरेक में कोई-न-कोई गुण होता है। बंद
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वाह ! ज़िन्दगी
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