Book Title: Wah Zindagi
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 47
________________ आप परिवार में भी सहभागिता निभाएँ। आप चार बहुएँ हैं तो ऐसा न करें कि आज एक ने काम किया, कल दूसरी ने, परसों तीसरी और फिर चौथी ने। न-न, ऐसा न करें। सब साथ मिलकर काम करें ताकि एक पर बोझा न पड़े। अब तो लोग पैसे का बँटवारा कर लेते हैं और महिलाएं काम का बँटवारा कर लेती हैं। सभी अपनी सहभागिता निभाएँ। साथ में काम करने से हर कार्य हल्का हो जाएगा। प्रेम को जीने के लिए वक्त-बेवक्त दूसरों के काम भी आओ। बेवक्त में जो काम आता है, वही हमारा अपना होता है। प्रेम की कसौटी इसी बात में है कि बेवक्त में व्यक्ति दूसरों के काम आए। जब हमारे घर में खुशियाँ होती हैं तब तो सभी अपने हैं लेकिन जब फाकाकशी का आलम हो तो जो साथ निभाए, वही हमारा अपना है। बाकी सब तो सपना है। ___ “अपनी बात समाप्त करूँ उससे पूर्व अतीत की एक घटना का जिक्र करूँगा। घटना यह है कि एक संत आहारचर्या के लिए निकले। धूप में चलतेचलते थक गए तो विश्राम करने के लिए एक चौकी पर बैठ गए। वह घर किसी वेश्या (गणिका)का था। गणिका ने ऊपर से झाँका तो देखा कि जो व्यक्ति चौकी पर विराजमान है, उसका मुख चमक रहा है और वह बहुत सभ्य और सौम्य लग रहा है। वह उतर कर नीचे आई और संत से अनुरोध किया, आप बाहर क्यों बैठे हैं? भीतर आ जाइए।' चूंकि संत थका हुआ था अत: वह घर के भीतर आ गया। गणिका ने पुन: अनुरोध किया कि, आप भोजन कर लें।' संत तो आहार-चर्या के लिए ही निकला था तो आहार भी कर लिया। गणिका ने कहा, 'महाराज, आप धूप में कहाँ जाएँगे? यहीं आराम कर लीजिए।' संत वहीं ठहर गया और उसने आराम कर लिया। लेटते ही उसे नींद आ गई। गणिका उसके रूप पर, उसके तेज पर इतनी अधिक मोहित हो गई कि उसने संकल्प कर लिया कि इसी व्यक्ति को वह अपना पति और प्रेमी बनाएगी। संध्या-समय जब संत रवाना होने को हुआ तब गणिका ने अपने मन की बात और अपने सारे भाव व्यक्त कर दिए और कहा, 'अब मैं आपके बिना जीवित नहीं रह सकती। मैं आपके लिए ही जीऊँगी और आपके लिए ही मरूँगी।' संत ने कहा, 'जब तुमने अपने आपको मुझे समर्पित कर दिया है तो मैं भी तुम्हें स्वीकार करता हूँ लेकिन आज नहीं। मैं तुम्हें तब स्वीकार करूँगा जब मेरे ४० वाह! ज़िन्दगी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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