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माँ-बाप नहीं हो सकते। बिना बेहतर नज़रिये के कोई गुरु अच्छा गुरु नहीं हो सकता। अगर नज़रिया ठीक नहीं है तो कोई भी दुकानदार ठीक से दुकान नहीं चला पाएगा। नज़रिया ठीक न होने पर कोई भी कर्मचारी ठीक से काम नहीं करेगा। बेहतर नज़रिया रखनेवाला व्यक्ति कर्मयोग करता है, मेहनत करता है इस भाव के साथ कि कर्म करना मेरा कार्य है और फल देना परमात्मा का अधिकार है। बेहतर नज़रिया रखने वाला दुकानदार अपने ग्राहकों से बहुत तमीज़ से बात करता है। अपने कर्मचारी को भी बेहतर नज़रिया अपनाने के गुर सिखाइए तो उनका आपके प्रति व्यवहार, उनका रहन-सहन, रीति-रिवाज़, तौर-तरीके बदल जाएँगे। ___शुरूआत स्वयं से करें। दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलें। खुद को बदले बगैर दूसरों को बदला भी नहीं जा सकता। आप अपने पिता को नहीं बदल सकते। अपनी पत्नी और भाई को नहीं बदल सकते। यहाँ तक कि अपनी बहिन और बच्चों को भी नहीं बदल पाते। कोई और बदले या न बदले, आप अपने आपको बदल लें। आपका नज़रिया बदला कि दुनिया बदली। एक पति-पत्नी के बीच झगड़ा होता था। उसने पत्नी को बदलने की, सुधारने की बहुत कोशिश की, पर वह सफल न हो पाया। एक दिन उसने इस बिन्दु पर सोचा। उसने अन्तत: खुद को ही बदल लेने का संकल्प कर लिया। बस, बात बन गई। झगड़े खत्म हो गए। तुमने अपने आपको सुधार लिया, अपने आपको बदल लिया, तो पत्नी तो अपने आप ही बदल गई। बेहतर जीवन के लिए नज़रिये का बेहतर होना बहुत ज़रूरी है और बेहतर नज़रिये के लिए खुद को ही बदलने का, सुधारने का संकल्प लेना पहली आवश्यकता है।
जीवन को बदलने के लिए एक ही गुरुमंत्र की जरूरत है : बेहतर नज़रिया, सकारात्मक और सार्थक नज़रिया।
बेहतर नज़रिये का पहला लाभ यह होता है : हमारी कार्य-क्षमता में वृद्धि होती है। दूसरा लाभ होता है : मिल-जुलकर काम करने की उत्सुकता हमारे भीतर पनपने लगती है। तीसरा लाभ : हमारे रिश्तों में मधुरता आने लगती है। चौथा लाभ : तनाव से बचने का मौका मिलता है। पाँचवा लाभ :
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वाह ! ज़िन्दगी
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