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स्वयं का प्रबंधन करने के लिए हम अपनी जीवन शैली को व्यवस्थित. करें। कब उठना, कब सोना, कब खाना, कब न खाना, कैसे बोलना, क्या न बोलना, अपने से बड़ों के साथ कैसा व्यवहार करना और छोटों से कैसा बरताव करना—ये सब वे पहलू हैं जिनके प्रति जागरूकता बरती जाए, तो जीवन के व्यावहारिक पहलुओं के प्रति भी प्रबंधन का प्रभाव स्थापित किया
सकता है । जीवन के रूपान्तरण के लिए यह एक बड़ी क्रांति होगी कि हम स्वयं को व्यवस्थित करने के लिए कृतसंकल्प हों। अगर आप रात में एक बजे सोते हैं और आठ बजे उठते हैं तो अपनी समूची दिनचर्या अव्यवस्थित कर लेते हैं। रात ग्यारह बजे खाना खाते हैं तो रुग्णता को निमंत्रण देते हैं। उससे गैस
और पित्त का प्रकोप बढ़ेगा। रात में सोने से तीन घंटा पहले खाना खाइए । | मैं देखा करता हूँ कि लोग दिन भर कुछ न कुछ खाया ही करते हैं। कुछ नहीं तो पान - जर्दा ही चबाते रहते हैं । अरे, पशु भी खाते हैं पर हमारे जितना नहीं। वे खाते कम और जुगाली ज्यादा करते हैं और हम बस खाए ही चले जाते हैं । वे खाते भी हैं और पीते भी हैं, हम क्या खाते हैं और क्या पीते हैं, न कहूँ तो ही ठीक है । अरे, यह हमारा पेट है। यह नगर निगम की कचरा पेटी नहीं है कि इसमें कुछ भी डालते चले गए। समय निश्चित कीजिए कि सुबह इतने बजे उठेंगे और इस वक्त नाश्ता करेंगे। खाली पेट चाय भी न पीयें । हो सके तो गाय का दूध पीएँ । दूध घर की गाय का हो तो सर्वश्रेष्ठ ! पता नहीं, आज कल कैसा कैसा दूध मिलता है और हम पीये चले जाते हैं।
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लोगों के घरों में चार कारें रखने को तो जगह है लेकिन एक गाय को रखने का स्थान नहीं है। हम सरकार को कोसते रहते हैं किन्तु स्वयं किसी एक गाय को भी संरक्षण नहीं दे सकते। घर में गाय को रखने की जगह न हो तो गौशाला से दूध ले आएँ, पर गाय का दूध अवश्य पीएँ । गाय का दूध पीयोगे तो बुद्धि बलिष्ठ रहेगी। दूध न भाए तो लौकी का सूप बनाकर ही पी लें। खाना समय पर खाइये। कहते हैं न कि जब घर से बाहर निकलो तो खा-पी कर निकलो अर्थात् समय पर भोजन लीजिए। नाखून काट कर रखें। अगर बढ़े हुए नाखूनों से खाना खाया तो बहुत से कीटाणुओं को शरीर में प्रवेश करने का मौका मिल जाएगा। हाथों को धोकर ही खाना खाएँ । भूख से आधी रोटी कम
कैसे करें स्वयं का प्रबंधन ?
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