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चरित्रनो ग्रंथ प्रगट करवामां आवे छे. छेवटे परमात्माने प्रार्थना करीए छीए के आ ग्रंथना वांचन, मनन अने श्रवणथी अनेक भव्यात्माओ तेवा पदना अधिकारी बनी अक्षय अमरपद पामो.
आ ग्रंथनी शुद्धि माटे यथाशक्ति प्रयत्न करवामां आवेल छे, छतां दृष्टिदोष के प्रेसदोष के एवा कोई प्रमादना कारणे कोई स्थळे स्खलना जणाय तो मिथ्यादुष्कृतपूर्वक क्षमा मांगीए छीए अने अमोने जणाववा विनंती करीए छीए. आत्मानंद भवन, वसंत पंचमी संवत १९८५ आत्म संवत ३३
गांधी वल्लभदास त्रिभुवनदास
दो शब्द
राजस्थान प्रान्तना जालोर जिल्लामां बाकरानगरमा २०५९ना माहासुद ६ना मंगलमय दिवसे मंगलमय श्रेष्ठ मुहूर्तमां मूलनायक श्रीविमलनाथ भगवंत आदि जिन प्रतिमाओनी अंजनशलाका अने प्रतिष्ठा महोत्सवे सानंद सोल्लासे भव्यातिभव्य जिनालयमां बिराजमान कर्या. ते श्री विमलनाथ भगवंतना जीवन चरित्रनुं भाषांतर आहोरना ज्ञान भंडारमांथी लईने आ चरित्रने संशोधन करीने छपाववामां आवेल छे. ज्ञान पिपासु आत्माओनी ज्ञान रूपी प्यास बुझाववा माटे श्री ज्ञानसागरजीए आ ग्रंथ संस्कृत भाषामां पद्य रूपे रचेल छे. ग्रंथमां जे छे ते 'ग्रंथ संक्षेप'नी अंदर दर्शावेल छे. ते वांचवाथी ग्रंथ वांचवानी उत्कंठा जागशे.
पाठको ज्ञानार्जन करी चारित्र ग्रहण करी वहेलामां वहेलां मुक्तिसुखने पामे एज अभिलाषा. २०६४ जालोर
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शुभं भवतु जयानंद
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