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श्री विमलनाथ प्रभु केवलज्ञान थया पछी बे वर्ष उणा पंदरलाख वर्ष सुधी पृथ्वी उपर विहार करतां प्रभुने आ प्रमाणे परिवार थयो. ६८,००० साधुओ, १,००८,०० साध्वीओ, १,१०० चौद पूर्वधारी, ४,८०० अवधिज्ञानी, ५,५०० मनःपर्यवज्ञानी, ५,५०० केवळज्ञानी, ९,००० वैक्रिय लब्धिवाळा, ३,२०० वादीओ, २,०८,००० श्रावको अने ४,३४,००० श्राविकाओ.
पोतानो निर्वाण समय जाणी प्रभुजी श्री समेतशिखर गिरि उपर गया, त्यां छ हजार मुनिओनी साथे अनशन व्रत अंगीकार कयु, एकमास सुधी अनशन प्रभुए पान्यु. अषाढ मासनी कृष्ण सप्तमीने दिवसे चंद्र रेवती नक्षत्रमा आवतां कायोत्सर्गे रहेला अने शुद्ध शुक्लध्यानथी विराजता श्री विमलनाथ प्रभु छ हजार मुनिओ साथे मोक्षमां पधार्या. ते वखते राजा अने इंद्रो खेद करता त्यां आव्या. पछी प्रभुनो निर्वाण महोत्सव भक्तिपूर्वक कर्यो. जे हकीकत अहिं आपवामां आवेल छे, ते वांचवाथी भक्ति प्रगट थाय छे. प्रभुनो निर्वाणमहोत्सव करी देवता, मनुष्य वगेरे स्वस्थाने जाय छे.
प्रभु कुमारपणामां अने व्रतमां पंदर पंदर लाख वर्षो, राज्यमां त्रीस लाख वर्षों मळी साठ लाख वर्षतुं तेमनुं आयुष्य हतुं.
स्वयंभू वासुदेव पोतानु साठ लाख वर्षनुं आयुष्य भोगवी पापकर्मना योगथी छट्ठी नरके गयो. भद्र बळदेव मुनिचंद्र मुनिनी पासे दीक्षा लई पोतार्नु पांसठलाख वर्षतुं आयुष्य पूर्ण करी मोक्षमां गया.
उपर प्रमाणे ग्रंथकार सूरिजी महाराज पांचमा सर्ग साथे आ चरित्र पण पूर्ण करे छे. छेवटे प्रशस्ति आपेल छे. जेमां पोताना गुरुमहिमानू वर्णन करी गुरुभक्ति दर्शावेल छे. अने आ ग्रंथ रचवानो हेतु तेमज कया क्षेत्रमां कई सालमां कया महिना, तीथिवारना रोज ग्रंथ पूर्ण करेल छे ते जणावी प्रशस्ति पूर्ण करेल
उपर प्रमाणे संक्षिप्तमां अमोए आ ग्रंथनो सार वाचकनी सुगमतानी खातर आपवामां आवेल छे.
आ महान उत्तम पुरुषना चरित्रनो ग्रंथ पठन पाठन करवा जेवो, अति आनंद उत्पन्न करनार, ज्ञान, दर्शन, चारित्रना प्रभावने प्रगट करनार अने धर्मने महामंगळ प्राप्त करावनार होई तेथी आत्मभावना, आत्मजागृति अने आत्मिक आनंद प्रगट करनार अनुपम अने मनहर रचना आ ग्रंथनी छे, एम वाचकवर्गने जणाया सिवाय रहेशे नहि; तेम जाणी आ तेरमा जिनेश्वर श्री विमलनाथ प्रभुना
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