Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 10
________________ प्रस्तुत पुस्तक का यह प्रयोजन नहीं कि यह आपको विभक्ति सम्बन्धी पूर्ण ज्ञान करा दे। पूरी जानकारी के लिए तो प्राचीन संस्कृत व्याकरणों का अध्ययन करना ही आवश्यक है। यहाँ तो संक्षेप में ही दिग्दर्शन कराया गया है। अतः विभक्तिसम्बन्धी कुछ ऐसे अटपटे विधानों को, जो बहुत ही कठिन तथा ग्रन्थिल हैं, छोड़ दिया है। यदि आवश्यकता हुई और भविष्य में पुस्तक अधिक आदर से देखी गई तो अगले संस्करण में उन्हें भी स्थान दे दिया जायगा। • एक प्रश्न है, जिसे स्पष्ट कर देना आवश्यक है। वह यह कि पुस्तक में भगवान महावीर का चम्पा पधारना, और विभक्तियों से वार्तालाप करना, कहाँ तक ठीक है ? ऐसा कहीं उल्लेख तो नहीं मिलता। फिर यह नयी कल्पना क्यों? कल्पना नयी नहीं है, बहुत पुरानी है। किसी भी विषय को अच्छी तरह समझाने के लिए कल्पना का आश्रय लिया जाता है और इस प्रकार के अद्भुत संवादों का आविष्कार कर लिया जाता है। ज्ञाताधर्मकथासूत्र में कूर्म आदि के उदाहरण ऐसी ही शैली से लिखे गए हैं। अतएव समवायाङ्ग सूत्र में ज्ञाताधर्मकथासूत्र का विवरण करते हुए लिखा है कि-'ज्ञाता में दोनों ही प्रकार के कथानक हैं, चरित्र और कल्पित ।" इससे सिद्ध है किस्वयं भगवान् महावीर ने भी रोचकशैली के लिए कल्पित कथाओं का भवलम्बन किया है। भनुयोगद्वारसूत्र में तो बड़े विस्तार के साथ इस सम्बन्ध में चर्चा उठाई गई है। उपमा के चार भेद बताते हुए तृतीय भेद में कल्पित उपमाओं का उल्लेख बहुत अच्छी तरह किया है। जिज्ञासुओं की जानकारी के लिए अनुयोगद्वारासूत्र का वह समस्त पाठ यहाँ बता देना उपयुक्त है। . १ ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-चरित्ताय कप्पियाय । -समवायांगद्वादशहाधिकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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