Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ ( २ ) व्याकरण का विषय कठिन होता है। कितनी ही सरलता हो, फिर भी कठिनता अवश्य रहती ही है । तथापि जहाँ तक हो सका, सरलता की ओर ध्यान रक्खा गया है। भगवान् महावीर के सामने विभक्तियों का पारस्परिक संवाद कुछ मनोरंजकता को लिए हुए है, जो कथा के वादविवाद के ढंग पर है । अतः पढ़नेवाले को अरुचि नहीं उत्पन्न होने देता। ज्यों-ज्यों पाठक आगे बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों उसकी जिज्ञासावृत्ति अधिकाधिक तीव्र होती जाती है, और वह मनोरंजन के साथ-साथ विभक्ति सम्बन्धी ज्ञान भी पा लेता है। प्रारंभ से ही मेरी श्रद्धा शाकटायन व्याकरण पर रही है। शाकटायन मुनि एक जैनाचार्य थे, जो व्याकरणशास्त्र के दिग्गज विद्वान् थे। महर्षि पाणिनि ने भी अपनी अष्टाध्यायी में 'लङः शाकटायनस्यैव' ३।४।१११ तथा 'व्योलघुप्रयत्नतरः शाकटायनस्य' ॥३॥१८ इत्यादि अनेक सूत्रों में शाकटायनाचार्य का बड़े आदर के साथ उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त ऋग्वेद और यजुर्वेद के प्रातिशाख्य में तथा यास्काचार्य के निरुक्त में भी शाकटायनाचार्य का नाम मिलता है। महाभाष्य में भी महर्षि पतञ्जलि ने 'उणादयो बहुलम्' सूत्र की व्याख्या में यह माना है कि शाकटायनाचार्य उणादि को धातुज मानते हैं-'शाकटायन आह धातुजं नाम इति ।' कहने का भाव यह है कि शाकटायन व्याकरण काफी पुराना है और इसकी भाधुनिक संस्कृत व्याकरणों पर काफी गहरी छाप है। अस्तु, कुछ प्राचीनता के नाते अथवा अनुराग के नाते विभक्ति संवाद में शाकटायन को ही आधार-भूमि बनाया है । शाकटायन पर भी अमोघवृत्ति, चिन्तामणि, प्रक्रियासंग्रह, रूप. सिद्धि भादि अनेक टीकाएँ हैं। सरलता की दृष्टि से चिन्तामणि टीका अधिक उपयुक्त है। अतः सूत्रों के उल्लेख के समय अधिकतर चिन्तामणि को ही सामने रक्खा है। बहुत से स्थलों पर अन्य टीकाओं का भी अवलम्बन किया मया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 100