Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 50
________________ षष्ठी विभक्ति ( सम्बन्ध) पंचमी विभक्ति ने जब प्रभुके समक्ष अपना निवेदन प्रकट कर दिया तो षष्ठी विभक्ति अग्रसर हुई। विधिपूर्वक अभिवन्दन के साथ बड़े ही प्रभावशाली शब्दों में अपना निवेदन सेवा में रक्खा। भगवन् ! मेरा नाम सम्बन्ध है। अखिल संसार में मेरा ही प्रभुत्व है। सम्बन्ध से ही तो सारा संसार चल रहा है। प्रत्येक प्राणी परस्पर के सम्बन्ध के लिए उत्कण्ठित हो रहा है, पूर्व सम्बन्ध को निभाने में तत्पर है। ___ मेरे रूप बड़े ही मनोहर हैं-धर्मस्य, धर्मयोः, धर्माणाम् । ये जीवमात्र को शिक्षा दे रहे हैं कि यदि तुम सुखी होना चाहते हो, अपना जीवन पवित्र बनाना चाहते हो तो धर्म से सम्बन्ध करो। जबतक आत्मा के साथ धर्म का सम्बन्ध न होगा तबतक आत्मा किसी भी प्रकार से सुखी नहीं हो सकती। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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