Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 55
________________ विभक्ति संवाद सर्वोत्कृष्ट पथ यही है कि इनको अन्तरात्मा के साथ पूर्णतया सम्बन्धित कर लिया जाय । रोगी का रोग भी कब दूर हो सकता है ? जब कि वह औषधी को अन्दर पहुँचायगा। जबतक औषधी पात्र में है तबतक कुछ नहीं हो सकता । ___ सुवर्ण आदि कठोर धातु भी जलरूप होकर द्रवित हो जाती हैं, अथवा भस्म होकर राख में परिणत हो जाती हैं। परन्तु कब ? जब कि अग्नि का धातु के साथ पूर्ण सम्बन्ध हो। इतना हो नहीं, प्रत्येक प्राणी अपने साथ सुख का सम्बन्ध चाहता है। संसार में कोई भी ऐसा जीव नहीं जो दुःख से घृणा तथा सुख से स्नेह न रखता हो। प्रभो! आपने भी इसी महान् उद्देश्य की पूर्ति के लिए अहिंसा-धर्म का प्रतिपादन किया है। अहिंसा के द्वारा ही प्रत्येक व्यक्ति सुख से सम्बन्धित हो सकता है। ___ दयासिन्धो ! कितने उदाहरण हूँ। मेरे स्वरूप को सिद्ध करनेवाले अनेकानेक उदाहरण हैं। समग्र साहित्य सम्बन्ध से हो प्रकाशमान है । अतः कृपानिधे! सर्वप्रथम मेरे हो सम्बन्ध में वर्णन करें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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