Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 53
________________ विभक्ति संवाद अमर" घनरूप हो जाती है । आत्मा ही नहीं, जिन और द्रव्यों के भी प्रदेश परस्पर अभेद्य सम्बन्ध से सम्बन्धित होते हैं वे भी कभी नष्ट नहीं होते । इस प्रकार के द्रव्य अनादि कहे जाते हैं, जैसे कि धर्म, अधर्म, आकाश। महाराज ! यह सब कुछ मैंने गर्व से नहीं कहा है । जो कुछ भी सत्य था, आपके सामने रख दिया है । मेरे गौरव को देखते हुए पहले मेरा वर्णन होना चाहिए। मैं करण में भी प्रभुत्व रखती हूँ। कभी कभी ऐसा होता है कि करण को भी मेरे लिए अपना स्थान छोड़ना पड़ता है। 'जानाति' के अज्ञान अर्थ में वर्तमान करण में भी षष्ठी विभक्ति होती है। वर्तमान और आधार में क्तप्रत्ययान्त धातु के कर्म और कर्ता में भी षष्ठी विभक्ति हुआ करती है। ५१ असरीरा जीवघणा उवउत्ता दसणे य णाणे य । सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥११॥ णिच्छिन्नसव्वदुक्खा, जाई जरामरणबंधणविमुक्का। भव्वाबाहं सुक्खं अणुहोन्ति सासयं सिद्धा ॥२१॥ -औपपातिक समाप्तिगाथा । तत्थ णं जे से सादीए अपजवसिए सेणं सिद्धाणं । -भग• श० ८ उ० ९ ५२ करणे ज्ञोऽज्ञाने ॥ १॥३॥१६५॥ जानातेरज्ञानार्थे वर्तमानस्य यत्करणं तस्मिन् टुसोसामो भवन्ति । . ज्ञानमवबोधः । सर्पिषो जानीते, सर्पिषा करणभूतेन प्रवर्तत इत्यर्थः । अज्ञान इति किम् ? स्वरेण पुत्रं जानाति । ५३ तस्य सदाधारे ॥ १॥३॥१६७ ॥ सति वर्तमाने यः कः आधारे च तदन्तस्य धातोः कर्मणि कर्तरि च Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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