Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 58
________________ सप्तमी विभक्ति (आधार ) यह सिद्ध हो जाता है कि संसार में कर्ता और कर्म ही मुख्य वस्तु हैं और उनकी आधार भूमि मैं हूँ। अतः सबसे बढ़कर मेरा ही गौरव है। गुण तथा पर्याय द्रव्य के आश्रित रहते हैं क्योंकि द्रव्य आधार हैं और गुण तथा पर्याय उनमें आधेयरूप से रहनेवाले हैं। प्रश्न किया जाता है-'ज्ञानं कुत्र तिष्ठति ?' ज्ञान कहाँ ठहरा हुआ है ? उत्तर मिलता है-'आत्मनि ।' अर्थात् ज्ञान आत्मा में रहता है। उक्त प्रयोग से सिद्ध है कि ज्ञान गुण आधेय है और वह आधारस्वरूप आत्मा में ठहरता है । 'आकाशे द्रव्याणि तिष्ठन्ति' यह वाक्य भी उक्त सिद्धान्त को ही पुष्ट करता है। यदि सैद्धान्तिक लोग आकाश का अस्तित्व स्वीकार न करें तो फिर घट पटादि पदार्थ कहाँ रहें ? उनको कहीं भी ठहरने को स्थान न मिले। भगवन् ! यह मेरी ही उदारता है कि मैं ( सातवीं विभक्ति आधार ) सब को अपने में स्थान दिए हुए हूँ। 'गुरौ श्रद्धा सदा नूनं संसारार्णवतारिका' यह पद्यांश बताता है कि गुरु में श्रद्धा करने से ही मनुष्य संसार-सागर से पार हो सकता है। संसार में गुरु ही एक मात्र पूज्य पुरुष है और हर्ष है कि मैंने वहाँ स्थान पाया है। गुरु में श्रद्धा-भक्ति शिष्य को उन्नत बना देती है। 'गुरु में श्रद्धा' यहाँ श्रद्धा का विषय गुरु है और इसलिये गुरु में (गुरौ श्रद्धा ) सप्तमो का प्रयोग किया है। जिनेन्द्रदेव ! मेरा गौरव इतना ऊँचा है कि तृतीया विभक्ति भी अपना स्थान छोड़ देती है और मुझे वहाँ की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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