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विभक्ति संवाद अधिकारिणी बना देती है। अतएव कर्म" से युक्त हेतु में मुझे स्थान मिलता है।
पूजा और प्रतिष्ठा में भी मैं ही प्रयुक्त होती हूँ। वैयाकरणों का कहना है कि साधु और निपुण शब्द से जहाँ अर्चा गम्यमान हो वहाँ सप्तमी का प्रयोग करना चाहिए । ___अधि" उपसर्ग के योग में ईशितव्य तथा ईशिता दोनों में सप्तमी का प्रयोग किया जाता है।
उप उपसर्ग से युक्त अधिकी में-अधिकवाले में सप्तमी का प्रयोग होता है । उप उपसर्ग अधिक और अधिकी के सम्बन्ध को सूचित करता है।
५६ हेतौ कर्मणा ॥१॥३॥१७॥ कर्मणा युक्त हेतौ वर्तमानाद् ज्योस्सुपो भवन्ति । तृतीयापवादः ।
चर्मणि द्वीपिनं हन्ति, दन्तयोर्हन्ति कुञ्जरम ।
बालेषु चमरी हन्ति सीन्नि पुष्कलको हतः ॥ ५७ साधुनिपुणेनार्चायाम् ॥ १॥३॥१७३ ।।
साधु निपुण इत्येताभ्यां युके अईयां गम्यमानायां ड्योत्सुपो भवन्ति । साधुर्देवदत्तो मातरि । निपुणो जिनदत्तः पितरि । अन्यत्र साधुः मृत्यो राज्ञः । तत्त्वाख्याने न भवति ।
५८ स्वेशेऽधिना ॥ १३॥१७४ ॥ अधीत्यनेन योगे स्वे ईशितव्ये ईशे ईशितरि स्वामिनि चार्थे वर्तमानाद् योस्सुपो भवन्ति । स्वे-अधिमगधेषु श्रेणिकः । अध्यवन्तिषु प्रद्योतः । ईशे-अधिश्रेणिके मगधाः । अधिप्रद्योतेऽवन्तयः ।
५९ उपेनाधिकिनि ॥ १३॥१७५॥ उप इत्यधिकाधिकिसम्बन्धं द्योतयति । तेन युक्त अधिकिनि ङ्योस्सुपो
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