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विभक्ति संवाद
तुम आपस में क्यों भेदभाव रखती हो ? हेतु, निमित्त, कारण और प्रयोजन में तो तुम सातों ही का सहावस्थान कितना सुन्दर लगता है ? जरा भी द्वन्द्व नहीं, जरा भी क्लेश नहीं। सब तरफ प्रेम ही प्रेम !
वचन-विभक्तियो! तुम्हारी अनुक्रमता बड़ी ही शृंखलाबद्ध है। यदि कहीं से शृङ्खला को तोड़ा जाय तो सारी परम्परा छिन्न-भिन्न हो जाती है। शृङ्खला के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। यह विश्व भी शृङ्खलाबद्ध है। लोकस्थिति का वर्णन मैंने आठ प्रकार से किया है। आठ प्रकार की लोकस्थिति इतनी शृंखलाबद्ध है कि उसमें कुछ भी न्यूनाधिक्य नहीं कर सकते। यदि जरा भी न्यूनता और अधिकता की जाय तो लोकस्थिति गड़बड़ में पड़ जाय । किसी तरह की कोई व्यवस्था रहेगी ही नहीं।
गौतम गणधर ने एक बार मेरे पास आकर प्रश्न पूछा कि भगवन् ! लोकस्थिति कितने प्रकार की है ? मैंने बतलाया था
हेतोः, धने हेतौ वसति । कं हेतुं, केन हेतुना, कस्मै हेतवे, कस्माद्धेतोः, कस्य हेतोः, कस्मिन् हेतौ तिष्ठति ? एवं निमित्तकारणप्रयोजनैरपि नेयम् । हेताविति किम् ? कस्य हेतुः । हेत्वथैरिति किम् ? केन वसति ? प्रायः इति प्रयोगानुसरणार्थम् - ____६४ कतिविहाणं भंते ! लोयहिती पण्णत्ता १ गोयमा ! भट्टविहा लोयहिती पण्णत्ता, तंजहा-मागास पइटिए वाए १, वायपइटिए उदही २, उदहीपइटिया पुढवी ३, पुढवीपइटिया तसा थावरा पाणा ४, भजीवा जीवपइडिया ५, जीवा कम्मपटिया ६, भजीव जीवसंगहिया , जीवा कम्म. संगहिया ॥ व्याख्याप्रज्ञप्ति श०१, ४०६, सू० ५४॥
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