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उपसंहार कि-लोकस्थिति आठ प्रकार की है। आकाशं पर वायु प्रतिष्ठित है। वायु पर घनोदधि (जल) प्रतिष्ठित है। उदधि पर पृथिवी है। पृथिवी पर त्रस और स्थावर जीव हैं। पुद्गेल जीवों के आश्रित हैं । जीवं कर्मों के आश्रित हैं। अजीव, जीव संगृहीत हैं । जीवं कर्म संगृहीत हैं । जीव संग्राहक है और जीव संग्राह्य है।
जिस प्रकार लोक स्थिति का आठ प्रकार से वर्णन है, ठीक उसी प्रकार सम्बोधन सहित आठ वचन विभक्तियों का भी मैंने विस्तार से वर्णन किया है। लोकस्थिति जैसी ही शृंखला वचन विभक्तियों की भी है:
निदेसे पठमा होइ, वित्तिया उवएसणे।
तइया करणंमि कया, चउत्थी संपयावणे ॥१॥ -निर्देश में प्रथमा, उपदेश में द्वितीया, करण में तृतीया और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति होती है।
पंचमी य अवायाणे, छटी ससामि-वायणे।
सत्तमी संनिहाणे य, भट्ठमी भामंतणी भवे ॥२॥ --अपादान में पञ्चमी, स्वस्वामि-सम्बन्ध में षष्ठी, आधार में सप्तमी, और आमन्त्रण में अष्टमी विभक्ति होती है।
तत्थ पढमा विभत्ती निदेसे, सो इमो अहं वत्ति ।
वित्तिया पुण उवएसे, भण कुणव, इमं वयं हवंति ॥३॥ -निर्देश में प्रथमा विभक्ति इस प्रकार है कि-अयं, सः, अहम् । उपदेश में द्वितीया-शास्त्रं पठ, कार्य कुरु । . सतीया करणंमि कया, भणियं च कयं च तेण वा मए वा ।
हंदि णमो साहाए, हवा चहत्थी संपयामि ॥en
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