Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ उपसंहार [ स्याद्वाद की दृष्टि से भगवान् का समाधान ] सातों ही विभक्तियों ने जब अपने वक्तव्य समाप्त कर दिए बो भगवान् ने बड़ी गम्भीर वाणी में सबको समझाना शुरू किया। भगवान् की अमृतमय देशना से सबकी सब विभक्तियाँ प्रसन्न हो उठी और भगवान् का सदुपदेश तन्मय होकर सुनने लगीं। भगवान ने कहा-आप सब मेल से रहें। संसार में प्रेम का जीवन ही जीवन है। परस्पर के ईर्ष्या, असूया, लड़ाई झगड़ा, विवाद आदि द्वन्द्व किसी भी दशा में ठीक नहीं होते । तुम में से कौन छोटी कौन बड़ी १ यह प्रश्न ही निराधार है। अपने अपने स्थान में सभी का गौरव है, सभी की प्रतिष्ठा है। संसार में सात प्रकार के अर्थ हैं । उनका अवबोध करानेवाली वचन-विभक्तियाँ भी सात ही हैं। जिस प्रकार शरीर के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100