Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 54
________________ षष्टी विभक्ति (सम्बन्ध ) उणादि बर्जित कृत् के गौण कर्म में भी षष्ठी विभक्ति को आदर का स्थान प्राप्त है। हे प्रभो! जीव के साथ ज्ञानादि का सम्बन्ध होने पर ही जीव पूर्ण सुखों का अनुभव कर सकता है। जबतक सम्बन्ध है तबतक जीव में जीवत्व है। जबतक सम्बन्ध है तबतक द्रव्य का अस्तित्व है। द्रव्य का अस्तित्व गुण पर्याय के सम्बन्ध पर ही अवलम्बित है। गुण पर्याय के सम्बन्ध के बिना द्रव्य है ही क्या चीज ? ऐसा हो नहीं सकता, फिर भी कल्पना कीजिए कि द्रव्य से गुण और पर्याय पृथक हो जाये तो द्रव्य का अस्तित्व ही नहीं रह सकता। इस दृष्टि से प्रत्येक द्रव्य का अस्तित्व भी मुझ पर ही आश्रित है। विश्वविद्यालय के छात्र भी मेरी उपासना से ही परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते हैं। जबतक छात्र विद्या को अपने अन्तर्हृदय में सम्बन्धित नहीं कर लेता तबतक वह किसी भी प्रकार अपने ध्येय में सफल-मनोरथ नहीं हो सकता। ___ संसार में चार पुरुषार्थ माने गए हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । इनकी जितनी भी ऊँची साधना की जायगी, जीवात्मा उतना ही ऊँची उठती चली जायगी। साधना का सोसामो भवन्ति । सति तः-राज्ञां मतः, राज्ञां पूजितः, प्रजानां कान्तः । आधारे त:-इदमोदनस्य भुत्तम् , इदं सक्तूनां पीतम् , इदमेषामासितम् । ५४ कर्मणि गुणे ॥ १॥३॥१६९ ॥ उणादिवर्जितस्य कृतः कर्मणि गुणे सोसामो वा भवन्ति । नेता अश्वस्य सुघ्नम् । गुण इति किम् ? नेताऽश्वस्य । कर्मान्तरापेक्षत्वं गुणत्वं, अप्रधानाधिकारादतो द्विकर्मकाणामिहोदाहरणम् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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