Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 49
________________ विभक्ति संवाद का गौरव प्रत्यय से है और प्रत्यय का गौरव प्रकृति से। यह प्रकृति और प्रत्यय का विभाग मेरे द्वारा ही होता है। भगवन् ! आप देख लें, मेरा प्रभुत्व कितना महान् है ! कितने अधिक शब्दों पर मेरा अधिकार है ! अधिक कहना मुर्खता है । अतः मेरे विषय में ही भगवन् ! सबसे पहले कथन करने की कृपा करें। षष्ठी न चेत् स षष्ठयन्तार्यविहितो भवति । आगमो विकारो वेत्यर्थः । - राज्ञी । सु-औ-जस्-वृक्षः वृक्षौ वृक्षाः । परः १११॥४४॥ यः प्रत्ययः स प्रकृतेः पर एव भवति । वृक्षः वृक्षौ वृक्षाः। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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