Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 42
________________ चतुर्थी विभक्ति (सम्प्रदान) किया गया है। कपिल रंग की बिजली चमकती है तो हवा चला करती है। साहित्यकारों ने वातरूप उत्पात में चतुर्थी विभक्ति करके 'वाताय कपिला विद्युत्' का प्रयोग किया है। ___ आगम साहित्य में भी मेरो प्रशंसा गाई गई है। पाठ आता है,-'जसट्टाए" कीरते नगभावे' । इसका भावार्थ है-जिस कार्य के लिए नग्नता (अपरिग्रह)व्रत धारण किया था, वह अजर अमर शाश्वत पद प्राप्त कर लिया। उक्त पाठ से सिद्ध हो जाता है कि कत्तों की जो भी क्रिया है, वह मेरे लिए ही है । कर्म और करण भी मेरे ही अनुचर हैं। ____संसार में जो कुछ भी साधना हो रही हैं, सब की साध्य देवी मैं हूँ। किसी ने कहा कि तुम अर्हन्त प्रभु की उपासना क्यों करते हो ? उत्तर मिला कि सिद्ध पद की प्राप्ति के लिए। इस पद से सिद्ध है कि सिद्ध पद साध्य है। उसके प्रकाशनार्थ मेरा ही उपयोग किया जाता है। भगवन् ! मैंने संक्षेप में अपने भाव आप के सामने प्रकट कर दिये हैं । आप जान लें, मैं कितनी महान् हूँ। अतः सर्व प्रथम मेरे ही सम्बन्ध में कहने की कृपा करें ? ४० औपपातिकस्त्र प्रश्नोत्तरभाग तथा भगवतीसूत्र प्रथम शतक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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