Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 40
________________ चतुर्थी विभक्ति (सम्प्रदान) कर्म में वर्तमान शब्द से चतुर्थी विभक्ति होती हैं । विकल्प कर्म भी प्रयुक्त हो जाता है। ૩૪ २५ जिसके लिए कोई चीज़ हो उसमें भी चतुर्थी विभक्ति होती है । 'रथाय दारु' इस प्रयोग में दारु-लकड़ी रथ के लिए है, अतः रथ में चतुर्थी है । प्रति और आङ् उपसर्गपूर्वक शृणोति से युक्त अभ्यर्थक में वर्तमान शब्द से भी चतुर्थी होती है । ૩૬ प्रति" और अनु उपसर्गपूर्वक ग ( शब्दे ) धातु से युक्त आख्यातृ में वर्तमान शब्द से भी चतुर्थी ही होती है । > नवाशुने मन्ये न त्वा श्वानं मन्ये । तृणादेरपि निकृष्टं मन्ये इत्यवजानाति । अकाकादिष्विति किम् ? न त्वा काकं घूकं शृगालं मन्ये । ३४ यदर्थम् ॥ १।३।१५० ।। यत्प्रयोजनं किंचिद् विवक्ष्यते तस्मिन्नर्थे वर्तमानाद् ङेभ्यांभ्यसो - भवन्ति । रथाय दारु | कुण्डलाय हिरण्यम् | ३५ प्रत्याङः श्रुवाभ्यर्थंके ॥ १।३।१४४ ॥ प्रति आङ् इत्येताभ्यां परेण शृणोतिना युक्तेऽभ्यर्थके वर्तमानाद् यांभ्यो भवन्ति । देवदत्ताय प्रतिशृणोति । जिनदत्ताय प्रतिशृणोति अभ्युपगच्छतीत्यर्थः । ३६ प्रत्यनोर्गृणाख्यातरि ॥ १३॥ १४४ ॥ प्रत्यनु इत्येताभ्यां परेण गृ शब्द इत्यनेन युक्ते आख्यातरि वर्तमानाद् डेभ्यभ्यसो भवन्ति । उपाध्यायाय प्रतिगृणाति, अनुगृणाति । उपाध्याये . -नोक्तमनुब्रवीति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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