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विभक्ति संवाद
चाहिए।' सातों ही विभक्तियाँ अपने अपने आग्रह पर स्थित थीं, और प्रत्येक अपना वर्णन ही सर्व प्रथम करवाना चाहती थीं।
भगवान् ने कहा कि आग्रह का कोई कारण नहीं है। संसार में जो कुछ भी पूजा प्रतिष्ठा है, वह सब गुण की ही है। अतः तुम सातों ही एक एक करके अपने गुण बतलाओ, अपनी विशेषता दिखलाओ।
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