Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 34
________________ १९ तृतीया विभक्ति (करण) जाने जाते हैं, दर्शन से शुद्धि होती है, चारित्र से इन्द्रियनिग्रह किया जाता है, और तप से अन्तरात्मा पूर्णतया परिशुद्ध हो जाती है।' हर कोई जान सकता है कि मेरी ( करण की ) कितनी बड़ी महिमा है । मैं कितनी सुन्दर विशेषता रखती हूँ। ___ करण मात्र में ही मैं सीमित हूँ, यह बात नहीं। मैं अन्य स्थलों में भी बड़े आदर का स्थान पाए हुए हूँ। जैसे कि सिद्धि अर्थात् क्रियानिष्पत्ति द्योत्य होने पर कालवाची और मार्गवाची शब्द से भी व्याप्ति में टा, भ्याम् , भिस् प्रत्यय होते हैं। सहार्थ"से युक्त अर्थ में वर्तमान शब्द से भी टा भ्याम भिस् प्रत्यय होते हैं। सहाथ के दो अर्थ हैं—तुल्ययोग और विद्यमान । प्रसित", अवबद्ध और उत्सुक शब्दों से युक्त आधार में भी विकल्प से तृतीया विभक्ति होती है। २०. टाभ्यांमिस्सिद्धौ ॥३१२७॥ सिद्धौ क्रियानिष्पत्तौ योत्यायो कालवाचिनोऽध्वधाचिनश्च शब्दात् व्याप्ती एकद्विबहुषु टा भ्याम् भिस् इत्येते यथासंख्यं प्रत्ययाः भवन्ति । मासेन, मासाभ्याम् , मासैः ज्योतिषमधीतम् । योजनेन, योजनाभ्याम् , योजनैः वैद्यमधीतम् । २१ सहार्थेन ॥ १॥३१२९ ॥ सहार्थस्तुल्ययोगो विद्यमानश्च, तेन युक्तेऽर्थे वर्तमानात् टाभ्यांभिसो भवन्ति । पुत्रेण सह स्थूलः । सहैव दशभिः पुत्रैर्भार वहति गर्दभी । २२ प्रसितावबद्धोत्सुकैः ॥ १।३।१३२॥ प्रसितादिभियुक्त आधारे टाभ्यांभिसो वा भवन्ति । केशैः प्रसितः, केशेषु वा प्रसितः। केशैरवबद्धः, केशेषु अवबद्धः । केशैरुत्सुकः, केशेषूत्सुकः। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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