Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

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Page 17
________________ विभक्ति संवाद कल्प ही कर दिया है। स्थान-स्थान पर फुलवारियाँ खिल रही हैं। पवन फूलों की मधुर एवं हृदयग्राही सुगन्ध को चारों ओर बिखेर रहा है। आम्रवन फलों से लदे हुए हैं। जहाँ तहाँ मयूर मस्त होकर नृत्य कर रहे हैं और अपने अति मधुर केकारव के द्वारा पूर्णभद्र वन को प्रतिध्वनित कर रहे हैं। वनश्री वनविहार के प्रेमी यात्रियों के लिए प्रत्येक प्रकार का आकर्षण सजाए विराज रही है। अहा कितना महान् आनन्द है ! जहाँ ऊपर आकाशलोक में महामेघ भौतिक-अमृत (जल) की वर्षा कर रहा है, वहाँ भूतल पर श्रमण भगवान महावीर स्वामी आध्यात्मिक धर्मामृत की वर्षा कर रहे है। भगवान् के समवसरण से आज पूर्णभद्र भी अपने पूर्णभद्र नाम को वास्तविक रूप में चरितार्थ कर रहा है। पूर्णभद्र वन के ठीक मध्य भाग में अशोक वृक्ष है । उसके नीचे विशाल स्फटिक शिला पड़ी हुई है। उस पर तप्त स्वर्ण-मूर्ति के समान भगवान महावीर पद्मासन लगाए विराजमान है। मुख दिव्य प्रभामण्डल से आलोकित है। भगवान महावीर के हजारों भिक्षु पूर्णभद्र वन में इधरउधर वृक्षों के नीचे बैठे हुए हैं। कितने ही आत्म-समाधि में तल्लीन हैं। कितने ही स्वाध्याय-ध्यान में मन हैं। कितने ही धर्मचर्चा में संलग्न हैं। कितने ही धर्मोपदेश देने में व्यस्त हैं। कितने ही प्रश्नोत्तर के द्वारा गूढ़ सिद्धान्तों की समालोचना में दत्तचित्त हैं, मानों पूर्णभद्र वन की भूमि का प्रत्येक कण त्याग और तपस्या के आलोक से जगमगा रहा है। स्फटिक शिला पर विराजमान भगवान महावीर ने एकान्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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