Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ विभक्ति संवाद आता है कि सम्यग्दर्शनरूप धर्म सुख देनेवाला है, फिर सम्यग्ज्ञानरूप धर्म सुख देनेवाला है । फिर सम्यक् चारित्ररूप धर्म सुख देनेवाला है । । जब तीनों धर्म एकत्र हो जाते हैं तब आत्मा को पूर्णतया अजर अमर सुख की प्राप्ति होती है । इसीलिए तो वैयाकरण कहते हैं कि - 'धर्माः सुखयन्ति ।' भगवन् ! एक बात और भी है । शब्दों के योग में अर्थात् सम्बन्ध में सबसे पहले मैंने ही शब्दों का निर्देश किया है । मेरे बिना शब्दों की गति नहीं । प्रत्येक क्रिया का आविर्भाव मेरे ही उद्योग से होता है । शुभाशुभ कर्मों का उत्पादक भी मैं ही हूँ क्योंकि मैं कर्ता हूँ। मेरी प्रधानता के आगे सब कारक नतमस्तक हो जाते हैं । अतः प्रभो ! सर्व प्रथम मेरे ही सम्बन्ध में कहने की कृपा करें ! ८ ६ योगे ॥१३॥९३॥ यदित ऊर्ध्वमुपक्रामयिष्यामः तत्सन्नियोगे भवति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100