Book Title: Vibhakti Samvad
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Sitaram Jain

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ विभक्ति संवाद स्मृत्यर्थक" स्मरति और अध्येति धातुओं के तथा दयते और ईष्टे धातुओं के योग में भी मैं हो जाती हूँ। साथ ही मेरी इतनी उदारता है कि मैं अपना स्थान षष्ठी को भी दे देती हूँ । भगवन् ! मैं अपने विषय कर्म तक ही सीमित नहीं हूँ । मेरी दौड़ बहुत दूर तक है । आधार, जो सातवीं विभक्ति है, वह भी मेरा उपासक है । अर्थात् कभी कभी मैं आधार में भी प्रयुक्त हो जाती हूँ । कब ? अधि" उपसर्ग पूर्वक शीङ, स्था और आस् धातु का आधार भी कर्म में बदल जाता है । तथा अनु", उप, अधि, आङ, उपसर्गपूर्वक वनति का आधार भी कर्म ही होता है । जिनेश्वर देव ! संसार में काल और मार्ग की व्याप्ति ही श्रेष्ठ मानी जाती है। बिना व्याप्ति-नैरन्तर्य के कोई भी कार्य १२ १२ स्मृत्यर्थदयीशां कर्म ॥ १|३|१११ ॥ स्मरणार्थानां धातूनां दयितेरीटेश्व यत्कर्म तत्कर्म वा भवति । मातुः स्मरति, मातरं स्मरति । मातुरध्येति, मातरमध्येति । सर्पिर्दयते, सर्पिषो दयते । लोकानामीष्टे, लोकानीष्टे । १३ शीङ स्थासोऽधेराधारः ॥ १।३।१२२ ॥ अधिपूर्वाणां शी स्था आस् इत्येतेषां य आधारः क्रियाश्रयस्य कर्तुः कर्मणो वा धारणात् अधिकरणं तत् कर्म भवति । ग्राममधिशेते । प्राममधितिष्ठति । प्राममध्यास्ते । अधेरिति किम् ? प्रामे शेते । पर्वते तिष्ठति । नद्यामास्ते । १४ वसोऽनूपाभ्याङः ॥ १।३।१२३ ॥ अनु उप अधि आब् इत्येतत्पूर्वस्य वसतेर्य आधारः तत्कर्म भवति । ग्राममनुवसति । प्राममुपवसति । प्राममधिवसति । प्राममावसति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100