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लिये मत मानो कि वह मेरो नांव ने ठीक उतरे हैं, बल्कि उन्हें सत्र न्याय की कटी पर रगड़ कर रख लो और चदि तुम्हारी जांच में भी वह पूरे उतरे लो अपनायो वरना नहीं। श्री स्वामी समंतभद्र ने वीर की बात को परख कर कहा,' वर्ग के देवों का सापकी भक्ति-पूजा करना तथा प्रातिशय विभूतियों का होना तो इन्द्रजाल में भी पाया जाता है इसके कारण हम अापको महान् नहीं मानते' । अापने राग द्वेष आदि को जीत कर सम्पूर्ण अहिंसा को पहले स्वयं अपनाया और फिर सुख शान्ति की स्थापना के लिये उस का संसार को उपदेश दिया इस लिये आपकी शरण ली है। श्री हरिभद्रसूरी ने भी महावीर के सिद्धान्तों को जांच कर कहाःवन्धु नः स भगवान् रिसवोऽपि नान्ये, साक्षान्न दृष्टवर एकतमोऽपि चैपाम् । श्रत्वा च. सुवरितं वच पृथग विशेषं, वीरं गुणातिशफलोलतया श्रिताःस्म २ ॥ " अर्थात्-महावीर हमारा कोई सगा भाई नहीं है और न दूसरे कपिल गोतमादि हमारे शत्रु हैं। हमले तो इन में से किसी एक को साक्षात् देखा तक भी नहीं है। हां! इनके वचनों और चरित्रों को सुना है। तो उनसे महावीर में गुणातिशय पाया, जिस से मुग्ध होकर अथवा उन गुणां की प्राप्ति की इच्छा से ही हमने महावीर का आश्रय लिया है।
परीक्षा का सम्पूरो अवसर देने का परिणाम यह हुआ कि ईश्वर के नाम पर अन्ध विश्वास का खड़ा किया हुआ किला धीरे २ टूटना शुरू होगया और जब उनके हृदय को भ० महावीर की वात ठीक जंची तो उन्हें विश्वास हो गया कि भ० महावीर के सिद्धान्तों के अलावा सुख-शान्ति प्राप्त करने का और कोई दूसरा उपाय नहीं है। इसी लिये आचार्य श्री काका क.लेलकर जी ने डंके की चोट कहा-"मैं दृढ़ता के साथ कह सकता हूँ कि भ० महावीर के अहिंसा सिद्धान्त से ही विश्व-कल्याण १ This book's p. 73. २ Anekant (vir Seva Mandir, Sarsawa) Val. I. P. 49. २२ ]
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