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भाव की वाणी से ही नहीं बल्कि चरित्र से शिक्षा दी । धर्म के दस लक्षण बता कर देश के चरित्र बल को दृढ़ किया और पापी को भी सुधार का अवसर देकर इतना ऊंचा उठाया कि जिन स्वर्ग के देवी-देवताओं को मनुष्य पूजता था वही देवी-देवता मनुष्य को पूजने लगे । भ० महावीर पृथ्वी पर चलने फिरने वाले हमारे समान ही मनुष्य थे, श्रावक धर्म ग्रहण करने के कारण राज-पद और मुनिधर्म पालने के पुण्य फल से नारायण. चक्रवर्ती इन्द्रादि अनेक महा सुखदायक जन्म धरते हुये अपने पुरुषार्थ से परमात्म पद प्राप्त किया इस लिए उनकी जीवनं पुरुषार्थी मनुष्यों के लिये बड़ी लाभदायक है:
"I want to interprete MAHAVIRA'S LIFE as rising from MAN-HOUD to GOD-HOOD and not from GOD-HOOD to SUPER GOOD-HOOD. If that were, I would not even touch Mahavira's Life, as we are not Gods but man and man is the greatest subject for man's study." -- Prof. Dr. Charlotta Kranse.
प्रोफेसर रङ्का ने कहा है - "मुझे तो नहीं मालूम होता कि भ० महावीर स्वामी ने अहिंसा को जितना जीवन में उतारा है, उतना किसी दूसरे ने ऐसा सफल प्रयोग किया हो । लेकिन क्या कारण है कि इन का दूसरे धर्म वाले उल्लेख तक नहीं करते” ? इस का स्वयं ही उत्तर देते हुये उन्होंने कहा, "इसमें उनका दोष नहीं है । अगर उन्हें ऐसा सुगम और सफल साहित्य मिल जाता जिस से वह जैन तत्व, महावीर तथा हिंसा का परिचय पा सकते तो वे उस ओर आकर्षित हुये बिना न रहते” मुखोपाध्याय सतीश मोहन ने तो वीर जीवनी छपवाने की मांग भारत सरकार से करते हुए कहा, "महावीर की जीवनी से भारत की जनता का परिचय बहुत थोड़ा है, ऐसे श्रहिंसाव्रती और त्यागी महापुरुष के जीवन के सम्बन्ध में हमें जितना जानना चाहिये उतना हम नहीं जानते । हमारे पास उन की कोई १ - २ जैन भारती, वर्ष ११, पृ० ११६ ।
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