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अच्छी जीवनी नहीं है, यह काम जल्दी से जल्दी होना चाहिए मैं इस ओर सरकार का ध्यान दिलाता हूँ, और आशा करता हूँ कि वे इस सम्बन्ध में उचित प्रबन्ध करे"। इसी कमी को अनुभव करते हुए अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद् ने साहू शान्तिप्रसाद जी के सभापतित्व में अपने २६ वें वार्षिक अधिवेशन में छठे प्रस्ताव द्वारा २४ अप्रैल १६४३ को देश-विदेश के विद्वानों से एक अच्छी वीर जीवनी लिखने की प्रार्थना की और सबसे उत्तम लेखक को ४०००) रु० का पुरस्कार भेंट करने की घोषणा की । हमने भी अनेक विद्वानों का ध्यान इस ओर दिलाया, परन्तु उन की विशेष रुचि इस ओर न देख कर परिचय कराने की योग्यता न होते हुए भी वीर-भक्ति के वश अपने टूटे-फूटे शब्दों में ही वीर जीवनी लिख कर हमने २० दिसम्बर १६४४ को परिषद् के जनरल सेक्रटरी ला० राजेन्द्रकुमार जी के पास भेज ही दी । जिस पर परिषद के सभापति महोदय श्री साहू जी का उत्तर आया-'आपकी वीर जीवनी बाबू सूरजभान जी आदि बहुत से विद्वानों ने पढ़ी। वे सब आप की मेहनत और खोज की बहुत ही प्रशंसा करते हैं, परन्तु उनकी राय है कि इस से इतिहास का काम नहीं लिया जा सकता, प्रमाणपुष्टि के लिये अवश्य लाभदायक है।" | . १ दैनिक संसार तिथि १६ अप्रैल १६५१ । २ वीर (२० मई १६४३) बर्ष २६, पृ० १७६ । ३ Letter of Dec. 28, 1544 from L. Rajendra Kumar
Jain to Digamber Das:-“I am in due receipt of your letter of the 20 th inst, and also the manuscript of the book that you have writien about Lord Mahavira. I am forwarding the same to Mr. S. P.
Jain at Dalmia Nagar" to enquire his views. ४ Letter No 10404 of July 25, 1945 of Shri L. C. Jain
Secretary, Sahu S. P. Jain to Digamber Das-"Your manuscript has been gone throogh by B. Surajbhaa
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